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पांचवां अङ्क

२६७

वह घर में नहीं है। न जाने कहाँ गई? उसे यह खबर मिल जायगी तो कदाचित उसकी जान बच जाय। मैं उसीकी टोहमें जा रहा हूँ। इस अन्धेरी रातमें कहां खोजूं?

(प्रस्थान)

हलधर—(मनमें) यह डायन न जाने कितनी जानें लेकर संतुष्ट होगी। ज्ञानी देवी है। उसने सबल सिंहको कमरे में न देखा होगा। समझी होगी वह गंगामें डूब मरे। कौन जाने इसी इरादेसे वह भी घरसे निकल खड़ी हुई हो। चलकर अपने आदमियोंको उसका पता लगानेके लिये दौड़ा दूं। उसकी जान मुफ्तमें चली जायगी। क्या दिल्लगी है कि रानी तो मारी-मारी फिरे और कुलटा महलमें सुखकी नींद सोये।

(अचल दूसरी ओरसे हवाई बन्दूक लिये आता है)

हलधर—कौन?

अचल—अचल सिंह कुंवर सबल सिंहका पुत्र।

हलघर—अच्छा, तुम खूब आ गये। पर अंधेरी रातमें तुम्हें डर नहीं लगा?

अचल—डर किस बात का? मुझे डर नहीं लगता। बाबूजीने मुझे बताया है कि डरना पाप है।

हलधर—जाते कहाँ हो?

अचल—कहीं नहीं।