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संग्राम

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सुना है कई असामी घर छोड़कर भागनेकी तैयारी कर रहे हैं। बैल बधिया बेचकर जायँगे। कबतक लौटेंगे कौन जानता है। मरें, जियें न जाने क्या हो। यन्त्र न किया गया तो ये सब रुपये भी मारे जायँगे। पांच हजारके माथे जायगी। मेरी राय है कि उनपर डिगरी कराके जायदाद नीलाम करा ली जाय। असामी सबके सब मोतबर हैं लेकिन ओलोंने तबाह कर दिया।

सबल--उनके नाम याद हैं?

कंचन--सबके नाम तो नहीं लेकिन दस पांच नाम छाँट लिये हैं। जगरविका लल्लु, तुलसी भूफोर, मधुबनका सीता, नब्बी, हलधर, चिरौंजी.........

सबल--(चौंककर) हलधरके जिम्मे कितने रुपये हैं?

कंचन--सूद मिलाकर कोई २५०) होंगे।

सबल--(मनमें) बड़ी विकट समस्या है। मेरे ही हाथों उसे यह कष्ट पहुँचे! इसके पहले मैं इन हाथोंको ही काट डालूंगा। उसकी एक दया-दृष्टिपर ऐसे २ कई ढाई सौ न्यौछावर हैं। वह मेरी है, उसे ईश्वरने मेरे लिये बनाया है नहीं तो मेरे मनमें उसकी लगन क्यों होती। समाजके अनर्गल नियमोंने उसके और मेरे बीच यह लोहेकी दीवार खड़ी कर दी है। मैं इस दीवारको खोद डालूंगा। इस कांटेको निकालकर फूलको