पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२४३

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२३० संतकब्य जोति समए स मानी जा , अछली प्रभु पहिचानिया । घने धनु पाइना धरणीधरमिलि जन संत समानिया ।४। गुनते. .तानिओर =गुण दि में निरह रह कर आवागमन के फेर में पड़ गए। एकसम'ए=एक नव 3 अछल्लो ==ह्वल रहृित भाव से। चेतावनी (३) रे चित चेतरि कीन दयालदमोदर चिबहित जनसि कोई । जे घावहि पंड बहिमंड कजकरतर करे यु होई यहाउ। जननी केरे उदर उदक महग्रिड कोआ बस दुआरा । देख़ अहारु अगनि संहि राई, सा धस हारा 1११। कुंभी जल माहि तन तियु बाहरि , पंच धीरु तिन्ह नtही । पूरन परमानंद मनोहरसमति िदेधु मन माही ।२। पाषणि की गुपढ़ होझ रहता, ताचो मार नाहो । कहे धना पूरन तहू को, मतरे जी इराही ।३)। कोन क्यों नहीं। विवहित .ड़ कर {?)। पाणि जीवु=पत्थर का कीड़ा प्रार्थना (४) गोपाल तेरा अरता। जो जन तुमरी भगति करते, तिन काज सेवारत ।रहा। बाल सबा मांगछ घीच, हरा चुसो करें नित जीड । पन्ही आगछादनुनोका, अनाज मंगलू सतलीका ।१। गऊ भैस माँगड , इक ताजनि तुरी चंगेरी। घर की गोहमि चंगो, जतु घंन लेने मंगी ।२॥ प'हो= जूते। अडदनु=वस्त्र। सतसका अच्छा । सावेरी = इधर। ताजनि. . . चंगेरी अच्छी तेज घोड़ी। गीहमि चंगी-सुंदरी गृहिणी वा पैनी।