पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५८३

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परिशिष्ट यारिभाषिक शब्दावली यहाँ उन कतिपय शब्दों के सांकेतिक अर्थ दे दिये जाते है जिनके प्रयोग संगृहीत रचनाओं में कहींकहीं दोख पड़ते हैं । उनका अभिप्राय यथास्थान बतला दिया गया है, किंतु उनके पारिभाषिक रूप को स्पष्ट करने के लिए उनका एक संक्षिप्त परिचय अलग भी दे दिया जाता है । अजपाजाष- नाम स्मरण की वह स्थिति वा पद्धति जिसमें सभी प्रकार के वाह्य साधन जैसे नामोचारण , माला का फेरना, अंगुलियों पर नामों का गिनना, आदि छोड़ दिये जाते हैं और उसकी अंतक्रिया आपसेआप होने लगती है । अनहद-अनाहत नाद अथवा बिना किसी के कुछ बजाये आपसे आप निरंतर होता रहने वाला शब्द जो समाधि स्थ योगियों को अपने शरीर के भीतर एक कार को मधुर ध्वनि के रूप में सुनायी पड़ता है और जि सके साथ संत लोग तल्लीनता का अनुभव करते हैं । अमृत अहम अर्थात् मस्तक के भीतर शीर्षस्थान में वर्तमान सहदल कमल का विकास नीचे की ओर है और उसके मध्य स्थित वं द्राकार विंदु से एक प्रकार का मंत्राव होता रहता है जिसे महारस भी कहते हैं । बह निम्न स्थान की ओर क्रमशः प्रवाहित होता हुआ अंत में मूलाधार चक्र के निकटवत्त सूकार स्थान तक आकर सूख जाता है । यदि अभ्यास द्वारा इसे ऊपर ही रोक लिया जाय और इसका आस्वादन किया जाय तो शरीर का दीर्घायु अथवा अमर तक हो जाना निश्चित समझा जाता है । अलल--अनलपक्ष नामक एक विचित्र चिड़िया जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि वह सदा आकाश में उड़ा करती है और वहीं रहती हुई अपना