पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१३४

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सचित्र महाभाग्न [पहला खण्ड ह भीम ! अजुन के विरह में दुखी द्रोपदी अब सिर्फ तुम्हारं ही महार है। इसलिए प्रियतमा का खूब खयाल रखना । हे नकुल ! हे महदेव ! तुम बखटके हमारे साथ रहना । हम तुम्हारी मदद करेंगे। आप लोग अच्छी तरह खा पी कर पहाड़ पर चढन के लिए यथेष्ट शक्ति प्राप्त कीजिए। ग्य आदि के साथ इन्द्रसन आदि नोकर चाकर और दुबले-पतले ब्राह्मण लोग सुबाहुराज के यहाँ छोड़ दिये गये। पाण्डवों ने बहुत थोड़े आदमियों को साथ लिया और गन्धमादन की ओर चले। द्रौपदी पर निगाह रग्ब कर सब लोग ऊँचे ऊँचे पहाड़ों को धीरे धीरं पार करने लगे। एक दिन महर्षि लोमश अकम्मात् हाथ उठा कर बोले :- यह देखा मामने जो जलधाग लहगती हुई बह रही है वह गन्धमादन के बदरिकाश्रम से निकली है। सब लोग इस भगवी भागीग्थी को प्रणाम कंगे । जिम स्थान को हम जा रहे हैं वह यहाँ से दूर नहीं है। तब पाण्डव लांग पुण्यमलिला गङ्गा की वन्दना करकं प्रसन्न-मन और नये उत्साह से फिर चलने लगे। इसके बाद धीरे धीरं गन्धमादन के नीचे पहुँच कर सब लोग पहाड़ की चोटी पर चढ़न लगे। कुछ ही दूर वे गये होंगे कि बड़े जोर से आँधी उठी । पत्तों और धूल के उड़ने से आकाश में गुबार छा गया। पत्थर का चूर मिली हुई हवा के झोंकों से यात्रियों को चाट पर चोट लगने लगी। खूब गहग अन्धकार हो जाने से न ता एक दूसरे को देख ही सकता था और न बातचीत ही कर सकता था। हवा के जोर से और जमीन फट जाने से गिरते हुए वृक्षों के भयङ्कर शब्द बार बार सुन पड़ने लगे। भीम द्रौपदी को लेकर धनुप की सहायता से एक बड़े वृक्ष के सहारे बैठ गये। कोई गुफा में, कोई विकट जङ्गल में घुस कर. कोई वृक्ष से लिपट कर, कोई पत्थर का मजबूत टुकड़ा पकड़ कर. किसी न किसी तरह, ठहर गया। ___ हवा के रुकत ही गुबार का दूर करकं मूसलधार पानी बरसने लगा। वृष्टि की अरराहट के माथ साथ बादलों में बिजली दम दम पर चमकने लगी और गड़गड़ाहट के साथ वज्रपात होने लगा। टूटे हुए पेड़ों को लिये हुए झरने घुमड़त उमड़त और कलकल करते बड़े वेग से बह चले। धीरे धीर पानी बहने की अरराहट मिट गई. हवा शान्त हो गई, बादल फट गये और सूर्य भगवान निकल आय । नब भीम को जार मे बुलात सुन कर पाण्डव लोग जल्दी जल्दी उनके पास आये। उन्होंने देखा कि सुकुमारी द्रौपदी टूटी हुई टहनी की तरह भीम की गोद में बहोश पड़ी है। यह देख कर कि उन्हें बड़ा क्लश हुआ है और उनका मुंह पीला पड़ गया है वे लोग व्याकुल होकर विलाप करने लगे। युधिष्ठिर द्रौपदी को अपनी गोद में लेकर बोले :-- हाय ! जा पहरा चौकीवाल घर्ग में दूध की तरह सफेद संजों पर साती थी वह आज हमारं ही दोष से भूमि पर पड़ी है। जब उन्होंन बार बार द्रौपदी के शरीर पर हाथ फेरा और गील पंखे से हवा की तब उसे धीरे धीरे होश आया। उस तरह तरह से धीरज देकर धर्मराज भीम से कहने लगे :- है भाई ! अब भी ऐसे बहुत से पहाड़ी स्थान पार करने हैं जिन पर बरफ के कारण चलना कठिन है। द्रौपदी उन्हें कैसे पार कर सकेगी? भीम बाल :-महाराज ! चिन्ता न कीजिए ! हम खुद द्रौपदी को उठा ले चलेंगे और आवश्य- पता होने पर आप सब लोगों को भी सहारा देंगे। हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच राक्षसों की सी अद्भुत शक्ति रखता है। याद करते ही उमने आ जाने का वचन दिया है। उसे बुला लेने से वह हम सबको ले कर चल सकेगा।