पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१४४

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१२२ सचित्र महाभारत [ पहला खण्ड ___ युधिष्ठिर की बात सुन कर मन्त्रियों को धीरज हुआ। पाण्डवों ने भी जेठे भाई की आज्ञा से शीघ्र ही अस्त्र उठाये और इन्द्रसेन आदि नौकरों के साथ गन्धर्वो पर आक्रमण किया। बड़े उत्साह से, अर्जुन गन्धर्व-सेना का नाश करने को तैयार हुए। इसी समय सहसा उनके कान में यह बात पड़ी। ठहरो ! ठहरो ! हम तुम्हारे मित्र चित्रसेन हैं। गन्धर्वगज को देख कर अर्जुन ने हथियार रख दिये और उनको हृदय से लगाया। अन्यान्य पाण्डवों ने भी अपने घोड़ों की रासें खींच ली और ताने हुए बागण धनुष से उतार लिये। इससे लड़ाई थम गई। अर्जुन ने कहा :-हे वीर ! तुमने रानियों-सहित दुर्योधन को किम लिए कैद किया है ? चित्रसेन ने कहा :-हे अर्जुन ! अपना अपमान करने के कारण हम उतना क्रुद्ध नहीं हुए। किन्तु हमें मालूम हो गया था कि ये लोग तुम्हें सताने और द्रौपदी की हँसी करने के लिए यहाँ आये हैं। इसी से हमने दुर्योधन को उचित दंड देने की ठानी है । दुर्योधन की बुरी नियत धर्मराज नहीं समझ सके । इमी लिए वे इन सबको छोड़ देना चाहते हैं । चलो उनके पास जाकर सब हाल कहें। युधिष्ठिर ने सब हाल सुन कर भी दुर्योधन को छोड़ देने की प्रार्थना की । गन्धर्वराज की प्रशंमा करके वे कहने लगे :- हे चित्रसन ! तुमने समर्थ होकर भी कौरवों को नहीं मारा, यह हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है। इन्हें छोड़ देने से हमारे कुल की मर्यादा की रक्षा होगी। हम तुम्हे देग्व कर बड़े प्रसन्न हुए। आज्ञा दो, हम तुम्हारी कौन अभिलाषा पूरी करें। युधिष्ठिर के शिष्टाचार से गन्धर्वराज बहुत प्रसन्न हुए। वे उनसे बिदा माँग कर अप्सगों के साथ अपने स्थान को चले गये। तब धर्मराज ने दुर्योधन और उनके भाइयों से बड़े प्यार से कहा :- भाई ! ऐसे बेडौल साहस का काम कभी न करना। अब बिना किसी विघ्न-बाधा के तुम आनन्द से घर जा सकते हो। युधिष्ठिर की ऐसी आज्ञा पाकर दुर्योधन ने उन्हें प्रणाम किया। बेहद लज्जित हो कर वे नगर की ओर धीरे धीरे चलने लगे। उस समय उनकी दशा बड़ी ही शोचनीय थी। उनका पैर न उठता था। उनकी इन्द्रियाँ उनके काबू में न थीं। वे बड़े ही आतुर थे। सब बातें याद करके क्षोभ से उनका हृदय फट रहा था। रास्ते में उन्हें एक मैदान देख पड़ा। वहाँ उन्होंने ठहर कर कुछ देर विश्राम करने का विचार किया। रथों से घोड़े खोल दिये गये । सब लोग वहीं आराम करने लगे। इतने में राहुग्रस्त चन्द्रमा की तरह मलिनमुख दुर्योधन के पास कर्ण आये। उन्हें सच्ची अवस्था तो मालूम न थी, इससे वे बड़े उत्साह से कहने लगे :- हे कुरुनन्दन ! बड़े सौभाग्य की बात है जो तुम स्त्री, सेना और सवारियों के साथ अपनी रक्षा कर सके। हमारी सेना भाग गई थी। इससे हम लड़ाई के मैदान में न ठहर सके । किन्तु तुमने देवताओं के समान युद्ध करके उन मायावी गन्धवों को परास्त किया। यह काम बड़ा ही आश्चर्यकारक हुआ। इसे और कोई न कर सकता था। यह सुन कर दुर्योधन बेतरह कातर हो उठे । उन्होंने रुंधे हुए कण्ठ से कहा :- हे कर्ण! तुम्हें सच्ची घटना का कुछ भी हाल मालूम नहीं। इसी.से हम तुम्हारी बात से ऋद्ध नहीं होते। हमने गन्धर्वो के साथ बड़ी देर तक युद्ध किया। पर उन्होंने माया के प्रभाव से हम लोगों को हरा दिया और हमारी स्त्री, पुत्र, मंत्री, सेना और वाहन आदि लेकर चल दिया। तब हमारे मन्त्रियों में से कुछ लोग एकत्र होकर पाण्डवों की शरण गये। युधिष्ठिर की आज्ञा से हमें छुड़ाने के लिए भीम और अर्जुन ने पहले तो घोर युद्ध किया, पर पीछे से अर्जुन ने जब अपने मित्र