पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१५५

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पहला खड] वनवास के बाद अज्ञात वास का उद्योग १३१ नहीं है। आज ही पाण्डवों के तेज़ बाण उस अभागे का हृदय फाड़ कर भूमि में घुस जायेंगे; इसमें सन्देह नहीं। __तब युधिष्ठिर आदि पाण्डव बड़े क्रोध में आकर धनुप टङ्कार करते हुए बताये हुए रास्ते से दौड़े। वे कुछ ही दूर गये होंगे कि जयद्रथ की सेना के घोड़ों की टाप से उड़ी हुई धूल का, आकाश से बातें करनेवाला गुबार उन्हें देख पड़ा और पैदल सेना के बीच में धौम्य की पुकार सुनाई देने लगी। उस समय पाण्डवों का क्रोध दूना हो गया। सेना की कुछ भी परवा न करके वे सीधे जयद्रथ के रथ की तरफ दौड़े। जयद्रथ की रक्षा करने के लिए कोटिकास्य अपना ग्थ भीमसेन के सामने ले आये। भीमसेन ने गदा की एक ही चोट से उसे चूर कर दिया और प्रास नाम के अस्त्र द्वारा उस राजपुत्र को भी मार डाला। महाबली अर्जुन ने अकेले ही पाँच सौ पहाड़ी योद्राओं का नाश किया। उधर त्रिगर्तराज ने युधिष्ठिर पर आक्रमण करके उनके चारों घोड़ों को मार गिगया। किन्तु धर्मराज इससे ज़रा भी शङ्कित न हुए। पहले तो उन्होंने एक अर्द्धचन्द्र बाण से विगतराज को जमीन पर गिरा दिया; फिर ब घोड़ों के अपने रथ को छोड़ सहदेव के रथ पर जा बैठे। नकुल रथ से उतर पड़े और तलवार से आश्चर्यजनक काम करते हुए सिपाहियों के मस्तक बीज की तरह जमीन पर छितराने लगे। यह देख कर राजा सुरथ ने नकुल को मारने के लिए एक बड़ा हाथी दौड़ाया। परन्तु नकुल ने तलवार का एक ऐसा हाथ माग कि उसके दोनों दाँत और सूंड़ कट गई और वह मर कर धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ा। क्षत्रियों के कुल के कलङ्क जयद्रथ ने अपने पक्ष के हजारों वीरों को मरा हुआ और पाण्डवों का बेहद ऋद्ध देख सेना से भरे हुए उस स्थान में द्रौपदी को रथ से उतार दिया और रथ लेकर लड़ाई के मैदान से भागा। यह देख कर भीमसेन द्रौपदी को युधिष्ठिर के पास ले गये और बोले :- महाराज ! इस समय शत्रुओं की प्राय: सारी सेना मागे जा चुकी है। जो लोग बचे हैं वे भी भाग रहे हैं। इसलिए आप प्रियतमा द्रौपदी को आश्रम में ले जाकर ढाढ़स दीजिए। हम देखें कि नीच जयद्रथ किधर गया। यदि वह पाताल में भी घुस गया होगा तो भी आज वह नहीं बच सकता। युधिष्ठिर ने कहा :-हे वीर ! इसमें सन्देह नहीं कि जयद्रथ ने बड़ा बुग काम किया है; किन्तु बहन दुःशला और माता गान्धारी का खयाल करके उसे मारना मत। युधिष्टिर की बात सुन कर क्रोध से काँपती हुई द्रौपदी व्याकुल होकर भीम और अर्जुन से बोली :- . हे वीर ! यदि हमें प्रसन्न रखने की कुछ भी इच्छा हो तो उस पापी को जीता न छोड़ना । स्त्री और राज्य का हरण करनेवाला यदि शरण श्रावे तो भी उसे ज़रूर मारना चाहिए। द्रौपही की बात सुन कर भीम और अर्जुन जयद्रथ को हूँढ़ने के लिए बड़ी तेजी से दौड़े। इधर द्रौपदी को लेकर धौम्य के साथ युधिष्ठिर आश्रम में लौट आये। द्रौपदी को कुशलपूर्वक लौट आई देख वहाँ के ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए । उनकी चिन्ता जाती रही। नकुल और सहदेव के साथ द्रौपदी कुटीर में गई । ब्राह्मणों के बीच में बैठ कर युधिष्ठिर सब हाल सिलसिलेवार कहने लगे। __जयद्रथ कुछ ही दूर गया होगा कि हवा की तरह दौड़ते हुए भीम और अर्जुन उसके पास पहुँच गये। दूर ही से अर्जुन ने उसके घोड़ों को मार गिराया। तब रथ छोड़कर जयद्रथ पैदल ही भागने लगा। यह देखकर भीमसेन भी रथ से कूद पड़े और-ठहर ! ठहर !-कह कर उसके पीछे दौड़े। पर दयालु अर्जुन ने यह कह कर कि--उसे मारना नहीं-भीम को रोका।