पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१६२

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[पहला खण्ड
सचित्र महाभारत

हमने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा। तुम किसके पुत्र हो और कहाँ से आये हो ? यह सब हम जानना चाहते हैं। . सहदेव ने कहा :--हम वैश्य हैं; सब लोग हमें तन्त्रिपाल कहते हैं। पहले हम राजा युधिष्ठिर की गायों की देख-भाल करते थे। अब वही काम पाने के लिए आप से प्रार्थना करने आये हैं। महदेव के सुन्दर शरीर को देख कर विगट बड़े प्रसन्न हुए और बोले :- तुम आज से हमारी सारी पशुशाला के अधिकारी हुए। इसके बाद उन्होंने उनको मुंहमागी तनख्वाह देने की आज्ञा दी। इस तरह आदर से नौकरी पाकर सहदेव सुग्व से समय बिताने लगे। इसके बाद ऊँचे, पूरे और गठीली दहवाले अर्जुन नाचनेवालों की तरह स्त्री-वेश बना कर और कान में कुण्डल, मस्तक में लम्ब बाल, हाथ में शङ्ख और कड़े धारण करके विराट के दरबार में पहुँचे । उम तेजस्वी मूर्ति का बखौल नारी-वेश देख कर राजा ने सभासदों से पूछा :- ये कौन हैं और कहाँ से आते हैं ? हमने तो ऐसी मूर्ति पहले कभी नहीं देखी । सभासद् लोग बोल :-हमारी समझ में नहीं आता कि ये कौन है । जब अर्जुन निकट पहुँचे तब विराट ने पूछा ::- तुम्हारा पुरुषों का ऐसा बल और स्त्रियों का ऐसा वंश देख कर हम बड़े विस्मित हैं। तुम कौन हो ? अर्जुन ने कहा :-महागज ! हमारा नाम बृहन्नला है। हम राजा युधिष्ठिर के अन्त:पुर में नाच-गाकर स्त्रियों का मन बहलाने और उनको नाचने-गाने की शिक्षा भी दत थे। इस विषय में हम बड़े निपुण हैं । हम बे-माँ-बाप के हैं. हमारे माता-पिता कोई नहीं। इसलिए हमें अपना लड़का या लड़की समझ कर राजकुमारी उत्तरा को नृत्य-गान मिखाने के लिए नौकर रख लीजिए। विगट ने कहा :--बृहन्नला! तुम हमारी कन्या उत्तग और नगर की अन्य स्त्रियों को नाचना, गाना आदि मिग्वानी । इससे हम बड़े प्रसन्न होंगे। पर तुम्हारी कान्ति और तेज देखने से मालूम होता है कि तुम इस काम के पात्र नहीं। राजा की आज्ञा के अनुसार अर्जुन अन्त:पुर में गये और रानियों को शिक्षा देने लगे। राजकुमारी उन्हें पिता की तरह मानने लगी। धीरे धीरे सभी स्त्रियाँ उन्हें प्यार करने लगीं ! अर्जुन आदमियों से मिलते ही न थे। इसलिए यह भी शङ्का न रही कि उन्हें कोई पहचान लेगा। ___इसके बाद एक दिन नकुल अस्तबल के घोड़ों को देख रहे थे। इसी समय उनकी असाधारण कान्ति देख कर राजा की निगाह उन पर पड़ी। उन्होंने उनको घोड़ों की विद्या जाननेवाला समझकर नौकरों को आज्ञा दी :- इस तेजस्वी आदमी को हमारे सामने लाओ। राजा की आज्ञा सुनते ही नकुल पास आकर बोले :- महाराज की जय हो ! हम घोड़े से सम्बन्ध रखनेवाली विद्या बहुत अच्छी जानते हैं। सब लोग हमें प्रन्थिक के नाम से पुकारते हैं। पहले हम राजा युधिष्ठिर के अस्तबल में नौकर थे। अब आपकी घुड़साल में नौकरी करना चाहते हैं। हम घोड़ों का स्वभाव, उनकी शिक्षा और उनकी दवादारू करना अच्छी तरह जानते हैं। विराट ने कहा :--तुम हमारे अश्वपाल होने के अच्छी तरह उपयुक्त हो। इसलिए आज से सब सवारियाँ तुम्हारे अधीन हुई। इस तरह एक एक करके सब पाण्डव मनमानी नौकरी पा गये और विराट के घर में छिपे छिपे रहने लगे।