पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/१७५

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पहला खण्ड ] पाण्डवों के अज्ञात वास की समाप्ति १५१ पास पहुंचे। वहाँ से समुद्र के समान कौरव-सेना दिखाई पड़ने लगी। बड़े-बड़े योद्धाओं से रक्षा की गई कौरवों की वह इतनी बड़ी सेना देख कर राजकुमार के रोंगटे खड़े हो गये। वे घबरा कर कहने लगे :- हे सारथि ! इन लोगों के साथ अकेले हम कैसे लड़ेंगे ? बड़े-बड़े वीरों से रक्षित इस सेना को तो खद देवता भी नहीं जीत सकते । हमें तो ऐसा ही मालूम होता है। इनसे लड़ना तो दूर रहा, इन्हें देख कर ही हमारे होश ठिकाने नहीं रहे हमारा शरीर सन्न हो गया है; हमारा सारा उत्साह जाता रहा है। पिता सब सेना लेकर चल गये हैं और हमें अकेले घर में छोड़ गये हैं। अब हम अकेले क्या करें ? अर्जुन ने उन्हें उत्तेजित करने के लिए कहा :- हे कुमार ! इस समय घबग कर शत्रुओं के आनन्द का कारण मत हो। अभी तक उन्होंने ऐसा कौन काम किया है जिससे तुम इतना डर गये ? चलते समय तो सबके सामने तुमने बड़े घमण्ड की बातें की थीं। अब यदि गायें लेकर न लौटोगे तो सारे स्त्री-पुरुप तुम्हारी दिल्लगी करेंगे। मैरिन्ध्री ने सबके सामने हमारे सारथिपन की प्रशंसा की है। इसलिए हमारी भी हँसी होगी। अतएव हम कौग्वों के साथ युद्ध किये बिना कैसे रह सकते हैं ? तुम्हें ज़रूर युद्ध करना पड़ेगा। उत्तर ने कहा :-चाहे कौग्व लोग हमाग सर्वस्व छीन ले लायँ, चाहे लोग हमारी जितनी हँसी उड़ावें, अथवा चाहे पिता हमाग जितना निरस्कार करें, पर हम किसी तरह युद्ध नहीं कर सकते। यह कह कर गजकुमार ने धनुष-बाण रख दिया और ग्थ मे कूद कर भागने लगे। तब अर्जुन ने कहा :- हे गजकुमार ! क्षत्रियों का यह धर्म नहीं कि युद्ध में पीठ दिखावें। डर कर भागनं की अपेक्षा युद्ध में मर जाना ही अच्छा है। यह देख कर कि कुमार पर हमारी बात का कुछ भी असर नहीं हुआ अर्जुन रथ से उतर पड़े और उत्तर के पीछे दौड़े। दौड़ने से उनकी वेणी खुल गई और कपड़े ढीले होकर हवा में इधर उधर उड़ने लगे। यह अद्भत दृश्य देख कर पास ही ठहरी हुई कौरव-सेना के वीर हँसने लगे। अर्जुन के शरीर की गठन देख कर कोई-कोई कहने लगे कि हमने तो इम मनुष्य को शायद कहीं देखा है। वे लोग इस बात की चर्चा करने लगे कि यह स्त्री वेशधारी मनुष्य कौन है। इधर अर्जुन ने सौ ही कदम पर भागते हुए राजकुमार के बाल पकड़ लिये और उसे रथ पर ज़बरदस्ती बिठा लिया । उत्तर ने आर्त स्वर से कहा:- बृहन्नला ! तुम शीघ्र ही रथ लौटाओ । हम तुम्हें बहुत सा धन देंगे। राजकुमार को मारे डर के प्राय: ब-होश देख कर अर्जुन ने हँस कर कहा :- हे वीर ! यदि तुममें लड़ने का उत्साह न हो तो सारथि बन कर रथ चलायो । डग्ने की कोई बात नहीं । हम अपने बाहु-बल से तुम्हारी रक्षा करेंगे। __ यह सुन कर उत्तर को धीरज हुआ। वे रथ चलाने को तैयार हुए । वेश बदले हुए अर्जुन को रथ पर सवार होते देख भीष्म, द्रोण आदि योद्धा लोग उन्हें अच्छी तरह पहचान गये । इधर तरह-तरह के अशकुन भी होने लगे । तब भीष्म से द्रोण कहने लगे :- मालूम होता है कि आज अर्जुन के सामने हम लोगों को हार माननी पड़ेगी। वे इन्द्रलोक से