१६४ सचित्र महाभारत [पहला खण्ड पुरोहित के चले जाने पर राजा लोगों से सहायता माँगने के लिए चारों ओर दूत भेजे गये। कृष्ण को लेने के लिए खुद अर्जुन द्वारका गये । जासूसों के द्वारा यह सब हाल दुर्योधन को मालूम हो गया। इससे उन्होंने भी सब जगह दूत भेजे । यह खबर पाते ही कि अर्जुन द्वारका जाते हैं वे भी एक तेज़ घोड़े पर सवार होकर, और थोड़े से नौकर साथ लेकर, जल्दी जल्दी उनके पीछे दौड़े। ____ अर्जुन और दुर्योधन दोनों एक ही साथ द्वारका पहुँचे और एक ही समय राजभवन में गये। कृष्ण उस समय सोते थे। सोने के कमरे में पहले दुर्योधन गये और कृष्ण के सिरहाने बैठ गये । फिर अर्जुन गये और पैताने बैठ कर कृष्ण के जगने की प्रतीक्षा करने लगे। ___ जगने पर कृष्ण ने पहले अर्जुन को, फिर दुर्योधन को देखा। कुशल-प्रश्न के बाद कृष्ण ने उनके आने का कारण पूछा । दुर्योधन ने हँस कर कहा :-- हे यादव-श्रेष्ठ ! जो युद्ध होनेवाला है उसमें तुम्हें हमारा पक्ष लेना पड़ेगा। यद्यपि कौरव और पाण्डवों दोनों, का सम्बन्ध और मित्रभाव तुम्हारे साथ एक सा है; तथापि हम पहले आये हैं। लोक-रीति तो यही है कि जो पहले आवे उसी की प्रार्थना सफल की जाय । कृष्ण ने कहा :-हे कुरुवीर ! इसमें सन्देह नहीं कि तुम पहले आये हो। पर हमने अर्जुन ही को पहले देखा है। इसलिए हम दोनों पक्षों की सहायता करेंगे। हमारे पास एक अबुद प्रसिद्ध नारायणी सेना है। यह एक तरफ रहेगी। दूसरी तरफ़ हम अकेले रहेंगे; पर न तो हथियार ही लेंगे और न लड़ेंहींगे । अर्जुन छोटे हैं । इसलिए पहले वे इन दोनों में से जो चाहें ले लें। यह जान कर भी कि कृष्ण युद्ध में शामिल न होंगे अर्जुन ने प्रसन्नतापूर्वक उन्हीं को लेना मंजूर किया। तब दुर्योधन एक अर्बुद नारायणी सेना पाकर और यह जान कर कि कृष्ण युद्ध न करेंगे बेहद प्रसन्न हुए। ___ इसके बाद दुर्योधन बलदेव के पास सहायता माँगने के लिए गये। उनके आने का कारण जान कर बलदेव बोले :-- हे राजन् ! हमने कई बार कृष्ण को धिक्कारा है कि दोनों ही पक्षवालों से हमारा एक सा सम्बन्ध है; इसलिए इस युद्ध में हम लोगों का शामिल होना उचित नहीं। पर उन्होंने हमारी बात न मानी। फिर भी हम कृष्ण के विरोधी दल की सहायता नहीं कर सकते । इसलिए हमने निश्चय किया है कि हम किसी तरफ़ न रहेंगे। अतएव आप पधारिए। आपने प्रतिष्ठित भरतवंश में जन्म लिया है, इसलिए क्षत्रिय-धर्म के अनुसार ही युद्ध कीजिएगा । सावधान ! इसमें कोई त्रुटि न होने पावे । - बलदेव की बात समाप्त होने पर दुर्योधन उन्हें गले से लगा कर बिदा हुए । इसके बाद वे कृतवर्मा के पास गये और एक अक्षौहिणी सेना-समेत उनको अपने साथ लिया। इस तरह वे महा बलवान् सेना-समूह को साथ लेकर लौटे । इससे कौरव लोग बड़े प्रसन्न हुए। दुर्योधन के जाते ही कृष्ण ने अर्जुन से पूछा :-- हे अर्जुन ! यह जान कर भी कि हम युद्ध में शामिल न होंगे क्यों तुमने हमें अपने पक्ष में रखना उचित समझा ? अर्जुन ने कहा :-हे मित्र ! सेना लेने के लिए हम तुम्हारे पास नहीं आये। धृतराष्ट्र के पुत्रों का तो हम अकेले ही संहार कर सकते हैं। तुम अद्वितीय नीतिज्ञ और हमारे पुराने मित्र हो; इसलिए तुम्हारी सलाह और मङ्गल कामना ही से हमारे सब काम सिद्ध हो जायँगे। हे वासुदेव ! हमारा एक बहुत पुराना मनोरथ भी तुम्हें पूरा करना पड़ेगा। हमारी इच्छा है कि इस युद्ध में तुम हमारे सारथि बनो।
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