पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२२४

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१९६ सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड परम मान्य और परम प्यारे कृष्ण का इस तरह अपमान होते देख सब लोग क्रोध से अधीर हो उठे। वे अपना अपना आसन छोड़ कर उठ खड़े हुए और परस्पर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर दाँत पीसने लगे । परन्तु दूत पर क्रोध करना व्यर्थ समझ कर अन्त को वे चुप हो रहे; कोई बोला नहीं। इसके बाद अर्जुन की तरफ फिर कर उलूक ने कहा :- राजा दुर्योधन ने आप से कहा है :-हे पार्थे ! इस समय तुम अपने मुँह अपनी बड़ाई करना छोड़ कर हाथ से कुछ काम कर दिखाओ। अब यह समय बातें बनाने का नहीं; किन्तु कुछ काम कर दिखाने का है। सिर्फ बड़ाई बघारने से यदि काम सिद्ध हो जाता तो संसार में किसी को किसी बात की कमी न रहती। बहुत दफे हमारे कान में यह बात पड़ी है कि तुम्हारे बराबर योद्धा दूसरा नहीं है । तथापि, तुम्हारा राज्य भी हमने छीन लिया है, उसका भोग भी हम कर रहे हैं, और इस युद्ध में तुम्हें मार कर उसकी रक्षा भी करेंगे। जब जुए में हरा कर हमने तुम्हें अपना दास बना लिया तब ताड़ के समान बड़ा तुम्हारा गाण्डीव धन्वा कहाँ था । तुम ऐसे बहादुर हो कि तुम्हारी स्त्री द्रौपदी को तुम्हें दासपन से छुड़ाना पड़ा ! तुममें जो सचमुच ही इतनी मूर्खता समाई हो तो तुम भी भीष्म के साथ युद्ध करो, अथवा अपने सिर की ठोकर से किसी पर्वत को तोड़ा; अथवा अपनी भुजाओं के बल से इस अगाध सेना-रूपी समुद्र को पार कर जाव ! किन्तु, महा अपवित्र और पापी आदमी की स्वर्ग-प्राप्ति की इच्छा के समान, युद्ध में हमें हरा कर राज्य पाने की वृथा आशा न करो। यह वाक्य-रूपी बाण अर्जुन के हृदय में बेतरह लगा। उनके माथे पर पसीना निकल आया। उसे वे अपने हाथ से पोंछने लगे। किन्तु यह सोच कर कि दूत मारा नहीं जाता, उलूक को उन्होंने दण्ड नहीं दिया। वे यह सब सुन कर भी चुप बैठे रहे। अन्त में भीमसेन को पुकार कर उलूक ने कहा :- हे भीमसेन ! आपके लिए राजा दुर्योधन ने हमसे कहा है कि उस खादड़, मूर्ख, बे-सींग के बैल से कहना :- पृथा के पुत्र ! हमारे ही प्रभाव से विराट नगर में वहाँ के राजा की रोटियाँ बना कर तुमने रसोइये की पदवी प्राप्त की थी। इससे तुम्हरी अच्छी प्रसिद्धि हुई । वाह, खूब नाम पैदा किया ! सभा में उस दिन जो प्रतिज्ञायें तुमने की थीं उन्हें अब याद कर लो और उन्हें सफल करने की चेष्टा में लगो। यदि तुममें कुछ भी सामर्थ्य हो तो हम सब भाइयों को मारो और दुःशासन का खून पियो । हे भीम ! मनों लडडू उड़ा जाने में तुम जरूर श्रेष्ठ हो; किन्तु युद्ध के मैदान में आगे बढ़ने पर अपनी गदा से लिपटे हुए तुम्हें जरूर ही जमीन पर लोट-पोट होना पड़ेगा। युद्ध और भोजन में बड़ा भेद है। __भीमसेन अब तक सिर नीचा किये बहुत बड़े काले नाग की तरह जोर-जोर साँस लेते हुए चुप बैठे थे। परन्तु इसके आगे उनसे न रहा गया। वे अपने आसन के ऊपर से सहसा कूद पड़े। यह देख कर कृष्ण समझ गये कि उलूक की आफत आई। इससे वे मुसकराये और भीम को उलूक पर चोट करने से रोक दिया। भीम को मना करके उन्होंने उलूक से कहा :-- हे उलूक ! तुम बहुत जल्द अब यहाँ से चल दो। जाकर दुर्योधन से कह देना कि पाण्डवों ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली और उनका अर्थ भी अच्छी तरह समझ लिया । तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही सब काम होगा। कल प्रातःकाल ही युद्ध प्रारम्भ हो जायगा। ___ यह सुनने पर भीमसेन का क्रोध कुछ कम हुआ और उन्होंने कहा :- हे उलूक ! दुर्योधन से कहना कि तुम्हारी उत्तेजना-पूर्ण बातें हमने सुन ली। हम लोगों में से जो प्रतिज्ञा जिसने की है उसे वह अच्छी तरह याद है। युद्ध में वे सभी प्रतिज्ञायें पूर्ण की जायेंगी। उनके सिवा इस समय एक प्रतिज्ञा हम और भी करते हैं। उसे भी सब लोगों के सामने दुर्योधन को सुना देना । वह प्रतिज्ञा यह है कि जब हम अपनी गदा की चोट से तुम कुलाकार को जमीन पर गिरा देंगे तब . धर्मराज के सामने हम तेरे सिर पर लात मारेंगे।