१९५ दूसरा खण्ड ] युद्ध की तैयारी • दुर्योधन बहुत दिनों से युधिष्ठिर के ऊपर कुपित तो थे ही, उन्होंने पाण्डवों की व्यर्थ निन्दा करने का यह अच्छा मौका पाया। उन्होंने उलूक से कहा कि तुम युधिष्ठिर को कपटी धार्मिक, भीमसेन को बैल की तरह बे-हिसाब खानेवाला, अर्जुन को अपने मुँह अपनी वृथा बड़ाई करनेवाला, और कृष्ण को कोई बड़ा काम किये बिना ही झूठी प्रसिद्धि प्राप्त करनेवाला कहना । यही नहीं, किन्तु, और भी कितनी ही अनादरसूचक बातें कहने के लिए उन्होंने उलूक को श्राज्ञा दी। ___इस असह्य और अपमानकारी संदेशे को लेकर उलूक डरते डरते पाण्डवों की सेना में पहुँचा। जाते ही वह धर्मराज के पास गया और बड़ी नम्रता दिखा कर बोला :- महाराज ! आप तो इस बात को अच्छी तरह जानते ही हैं कि दूत का क्या कर्तव्य है। इससे राजा दुर्योधन ने जो संदेशा कहने के लिए मुझे भेजा है उसके लिए मुझ पर आप क्रोध न कीजिएगा। युधिष्ठिर ने कहा :-हे उल्लूक ! तुम्हें कुछ भी डर नहीं । उस मूर्ख, लोभी और अदूरदर्शी ने जो कुछ कहा हो उसे तुम निर्भय कह सुनाओ। तब उलूक ने, उस समय जितने राजा वहाँ बैठे थे सबके सामने, युधिष्ठिर से कहा:- महाराज ! राजा दुर्योधन ने आपसे कहा है :- हे जेठे पाण्डव ! तुम्हें तो लोग बड़ा धार्मिक कहते हैं; फिर क्यों तुम इस समय अधर्म कर रहे हो ? ऊपर से तो तुम यह दिखाते हो, मानो तुम प्राणिमात्र के अभयदाता हो-एक चिउँटी तक के भी प्राण लेना तुम पाप समझते हो--फिर क्या समझ कर आज तुम सारे क्षत्रियों का नाश करने की तैयारी में हो ? हे चतुर-चूड़ामणि ! जिस धर्मात्मा का धर्म-चिह्न ऊँची ध्वजा के समान सदा प्रकाशित देख पड़ता है, किन्तु जिसके भीतर पाप-कर्म छिपा रहता है, उसके धर्मव्रत को बिड़ालव्रत कहते हैं अर्थात् बिल्ली जैसे देखने में बहुत सीधी-सादी मालूम होती है पर चूहे को घात में पातं ही उस पर टूट पड़ती है, वैसे ही इस तरह के धर्मधारी भी छिप-छिपे बड़े-बड़े पाप कर्म करते हैं। हे धर्मराज । तुम्हारी बातों और तुम्हारे काम-काज में बडा भेद है। उनमें परस्पर कुछ भी मेल नहीं। तुम कहते कुछ हो, पर करते कछ हो। इससे हमारी समझ में तुम सच्चे धार्मिक नहीं; किन्तु बिड़ाल-व्रतवालों की तरह के धार्मिक हो। कुछ भी हो. यदि तुम्हें यद्ध ही करना है तो अपने पुराने दुःखों को अच्छी तरह याद करके वीरों का ऐसा बरताव करो। हमने तुम्हें जो जो दु:ख दिये हैं, हमने तुम्हारी माँ को जो जो क्लेश पहुँचाये हैं, हमने तुम्हारी पत्नी द्रौपदी का जिस जिस तरह से अपमान किया है, उस सबको अच्छी तरह याद करके अपने आपको खूब उत्तेजित करो। फिर यदि तुममें कुछ भी पुरुषत्व हो तो अपना पौरुष दिखलाओ। कृष्ण ने सञ्जय से कहा था कि पाण्डव लोग युद्ध और शान्ति दोनों के लिए तैयार हैं। अब यह युद्ध का समय आ गया है। इससे अब अपनी बात को पूरी करो। धर्मराज के विषय में उलूक के ये वचन ऐसे कठोर थे जैसे आज तक कभी न सुने गये थे। उन्हें सुन कर सब लोग चकित हो गये और परस्पर एक दूसरे का मुंह ताकने लगे । तब उलूक ने कृष्ण की तरफ देख कर कहा:- राजा दुर्योधन ने आपसे यह कहने के लिए कहा है :- हे यादव ! दूत बन कर हमारी सभा में आने के समय तुम जानते थे कि दूत मारा नहीं जाता और न उसे किसी तरह का कष्ट ही पहुँचाया जाता है । इसी से तुमने वहाँ बड़ी बहादुरी बूकी थी; बड़ी बड़ी बातें कही थीं; और बहुत कुछ गर्जन-तर्जन किया था। अब युद्ध के मैदान में उन सब बातों को सत्य करके दिखाओ । हे कंस के सेवक ! तुम जो अचानक ही इतने प्रसिद्ध हो गये हो उसका सिर्फ यही कारण है कि तुम्हें हमारे समान राजा के साथ कभी युद्ध नहीं करना पड़ा। अब हम देखेंगे कि तुम कितने वीर और कितने बलवान हो।
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