दूसरा खण्ड ] युद्ध का प्रारम्भ २०९ दुर्योधन की इस बात से भीष्म की आँखें क्रोध से लाल हो गई। उन्होंने भौंहें टेढ़ी करके कहा :- हे राजन् ! हम पहले से बार बार आपसे कहते आये हैं कि पाण्डव महापराक्रमी वीर हैं। उन्हें जीत लेना कोई सहज काम नहीं। खैर जो कुछ हो; यह कभी मत समझना कि हम जान बूझ कर अपने कर्त्तव्य में त्रुटि करते हैं । नहीं, जो कुछ हमसे हो सकेगा, उसमें कुछ भी कसर न होने पावगी। इस बात को अभी तुम अपनी आँखों देख लेना। यह कह कर ऊँची ऊँची लहरोंवाले समर-रूपी उस महा-सागर में भीष्म फिर कूद पड़े और बड़े ही अद्भुत अद्भुत कृत्य कर दिखाने लगे । उन्होंने अपने धनुष को खींच कर गोल मण्डलाकार कर दिया, और उससे काले साँप की तरह भयङ्कर और चमकते हुए असंख्य बाण बरसाना प्रारम्भ किया । वे बारण बड़े वेग से चारों ओर गिरने और पाण्डवों के महारथी वीरों को छेद छेद कर उन्हें जमीन पर गिराने लगे । युद्ध के मैदान में भीष्म को अभी पूव में, अभी पश्चिम में, आँख की पलक मारते उत्तर में, फिर पल भर में दक्षिण में देख कर पाण्डव-पक्ष के वीर भय और विस्मय से विह्वल हो उठे। इस तरह पाण्डव-सेना जब निर्दयता से काटी जाने लगी तब उसके पैर उखड़ गये। अर्जुन के देखते ही वह भागने लगी। महा-तेजस्वी कृष्ण से पाण्डवों की सेना का भागना न देखा गया। उन्होंने अर्जुन को बहुत धिक्कारा । वे बोले :- ____ हे अर्जुन ! यदि तुम होश में हो, यदि तुम्हारी बुद्धि ठिकाने हो, तो तुरन्त ही भीष्म पर आक्रमण करो । देखो ये राजा लोग भीष्म के डर से इस तरह भाग रहे हैं जैसे सिंह के डर से छोटे- छोटे मृगों के झुण्ड भागते हैं। युद्ध के मैदान में तुम्हारे रहते पाण्डव-सेना की यह दशा होना बड़े अफसोस की बात है। यह कह कर अर्जुन के रथ को कृष्ण भीष्म के सामने ले गये । फिर दोनों सेनापतियों में घोर युद्र आरम्भ हुआ । बाण छोड़न में अर्जुन बे-तरह मिद्भ-हस्त थे। उनमें हाथ की चालाकी बड़ी ही अद्भुत थी। उन्होंने भीष्म के धनुप को कई बार काट कर उनका बाण बरसाना बन्द कर दिया। इस पर भीष्म बड़े प्रसन्न हुए और अर्जुन की बार बार प्रशंसा करने लगे। अर्जुन भी बूढ़े भीष्म की युद्ध- चातुरी और आश्चर्यजनक उत्साह देख कर मन ही मन बड़े विस्मय को प्राप्त हुए । पितामह के युद्ध- सम्बन्धी चमत्कार ने अर्जुन के हृदय पर ऐसा असर किया कि उन्होंने पितामह को और अधिक पीड़ित करने का इरादा छोड़ दिया। उन्होंने मन में कहा, इस बुड्ढे वीर को अधिक सताना उचित नहीं । परन्तु अजेन के पक्षवाले पाण्डव-वीरों ने कौरवों की सेना पर बडे वेग से आक्रमण किया। भीष्म जो बे-तरह भीषण मार मार रहे थे उन्हें तो अर्जुन ने रोक रक्खा । इससे कौरवों की तरफ से कोई विशेष डर न रहा । इसी कारण से पाण्डवों को अपना विक्रम दिखाने का और भी अच्छा मौका मिला । उन्होंने अपने शत्रुओं को बहुत ही हानि पहुँचाई। कुछ ही देर में कौरवों के दस हजार रथ, सात सौ हाथी, तथा सौ पूर्वी वीर और सूदक देश के सारे योद्धा बिलकुल ही नष्ट हो गये। दुर्योधन की सेना का धीरज छूट गया। बड़े बड़े वीरों की वीरता नाक में मिल गई, उनका सारा उत्साह जाता.रहा। अन्त में कौरवों के सेनाध्यक्षों ने दुर्योधन की आज्ञा से उस दिन का युद्ध समाप्त किया। ____इसी तरह भीष्म प्रतिदिन पाण्डवों की सेना का नाश और अर्जुन उनका निवारण करने लगे। जहाँ भीष्म पाण्डवों का संहार प्रारम्भ करते तहाँ अर्जुन उनके सामने जा डटते और उन्हें वहीं रोक देते। फिर भीष्म की एक न चलती । सायङ्काल युद्ध बन्द होते समय पाण्डवों ही की जीत रहती। प्रति- दिन कौरवों को निराश होना पड़ता; प्रतिदिन उनकी आशाओं पर पानी पड़ जाता; प्रतिदिन उनके हृदय का सन्ताप बढ़ता। इस हार से दुर्योधन के हृदये पर भारी धक्का लगता। बे-तरह क्रुद्ध होकर वे भीष्म फा०२७
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