पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२४४

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२१६ सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड कृष्ण ने कहा :-महाराज ! आपकी सलाह हमें पसन्द है। खुद भीष्म ही से उनके मरने का उपाय पूछने से जरूर ही हमारा मतलब सिद्ध हो जायगा। यह निश्चय हो जाने पर कृष्ण ने भी अपने अस्त्र-शस्त्र और कवच रख दिये, और पाण्डवों ने भी। इस प्रकार शस्त्रहीन होकर इन लोगों ने भीष्म के डेरों में प्रवेश किया। वहाँ जाकर उन्होंने भीष्म की पूजा की और कहा-इस समय हम आपकी शरण आये हैं; हमारी लज्जा अब आप ही के हाथ है। भीष्म को उनसे मिल कर बड़ा आनन्द हुआ। वे प्रीतिपूर्वक कहने लगे :- हे धर्मराज ! हे कृष्ण ! हे भीमसेन ! हे अर्जुन ! हे नकुल ! हे सहदेव ! तुम्हारा स्वागत है। तुम भले आये । हम तुम्हें देख कर बहुत प्रसन्न हुए । कहो, तुम्हारे लिए हम क्या करें । कौन ऐसा काम है जिसे करने से तुम प्रसन्न होगे ? हम वही करने को तैयार हैं । हे पितामह ! आप हमेशा ही शरों की वर्षा करके हमारी सेना का नाश करते हैं। और हम आपका अनिष्ट कर नहीं सकते । अतएव अब आप ही बतलाइए कि अपने लाभ के लिए हमें क्या करना चाहिए। भीष्म पितामह का एक तो यों ही पाण्डवों पर स्नेह था; फिर वे धर्म-परायण थे। पाण्डवों के हाथ से कभी कोई अधर्म नहीं हुआ । भीष्म को ऐसे धर्मिष्ठ और स्नेहभाजन पाण्डवों को युद्ध में अत्यन्त पीड़ित करना पड़ता था। इस बात को सोच कर, और अपने विषय में दुर्योधन के मर्मभेदी कड़वे और सन्देह से भरे हुए वचन याद करके, भीष्म को जो वैराग्य पहले ही से हो रहा था, वह इस समय और भी बढ़ गया। उन्होंने अपने जीने की इच्छा बिलकुल ही छोड़ दी और प्रसन्न-मन पाण्डवों से बोले :- हे पाण्डव ! जब तक हम जीते हैं तब तक तुम्हारी जीत होने की कोई आशा नहीं। इससे हम तुम्हें आज्ञा देते हैं कि तुम लोग हम पर बे-खटके वार करो। तुमने जो हमारी मान-मर्यादा की रक्षा की है उसी से हम बहुत प्रसन्न और सन्तुष्ट है। अब इस समय हमें मार डाले बिना इस युद्ध की समाप्ति न होगी । हे युधिष्ठिर ! तुम्हारी सेना में राजा द्रुपद का जो शिखण्डी नामक पुत्र है वह असल में स्त्री है। पुरुषत्व उसे पीछे से प्राप्त हुआ है। इस कारण उसके ऊपर हम हथियार नहीं चला सकते। यह भेद हमने तुमसे बतला दिया। अब हमारे मारने का उचित उपाय जाकर करो। यही हमारा उपदेश है। पितामह को परास्त करने का उपाय मालूम हो जाने पर युधिष्ठिर ने महात्मा भीष्म को बड़े भक्ति-भाव से प्रणाम किया, और कृष्ण तथा भाइयों-सहित अपने डेरों को लौट आये । परन्तु प्राण छोड़ने के लिए तैयार होनेवाले पितामह के वचन सुन कर अर्जुन को बड़ा दुख हुआ। उन्हें बड़ी लज्जा लगी। वे कृष्ण से कहने लगे :- हे मित्र ! लड़कपन में धूलि से भरे हुए हम लोग जिसे पिता कह कर पुकारते थे और जो हमसे यह कहते थे कि हम तुम्हारे पिता नहीं, पिता के पिता हैं-उन्हीं वृद्ध पितामह पर हम किस प्रकार कठोर आघात करेंगे और किस प्रकार हम उन्हें मारेंगे ? वे चाहे हमारी सारी सेना का नाश क्यों न कर डालें, अथवा चाहे हमारी हार नहीं मृत्यु ही क्यों न हो जाय, हम किसी प्रकार ऐसा अन्याय और अधर्म न कर सकेंगे। कृष्ण ने कहा :--हे धनञ्जय ! तुमने प्रतिज्ञा की है कि तुम भीष्म को मारोगे । क्षत्रिय होकर तुम उस प्रतिज्ञा को नहीं तोड़ सकते । खैर उसे जाने दो। तुम खुद ही समझ देखो, भीष्म की इस समय सचमुच ही मृत्यु आ गई है । यदि यह बात न होती तो वे तुम्हें कभी ऐसा उपदेश न देते । पर सिवा तुम्हारे और