पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२४५

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दूसरा खण्ड ] युद्ध का प्रारम्भ २१७ कोई उन्हें मारने की शक्ति नहीं रखता। इससे युद्ध के मैदान में तुम अपने को मृत्यु का निमित्त-मात्र समझो। यह न सोचो कि तुम पितामह को मार रहे हो; नहीं, मारनेवाली है मृत्यु; तुम केवल उस मृत्यु के निमित्त हो । अताएव तुम्हें युद्ध में यह बात भूल जाना चाहिए कि ये हमारे कुटुम्बी हैं, ये हमारे मित्र हैं, ये हमारे गुरु-जन हैं। सम्मुख आ कर जो कोई तुम पर वार करना चाहे उसे मारने में तुम ज़रा भी, सोच विचार न करो। आततायी को--अपने ऊपर अत्याचार करनेवाले को--भी भला कोई छोड़ता है ? अर्जुन ने कहा :--हे कृष्ण ! यदि बहुत ही जरूरी समझा जाय तो शिखण्डी ही पितामह का वध साधन करें-वही उन्हें मारें। शिखण्डी को सामने देख कर महात्मा भीष्म हथियार रख देंगे। हाँ, भीष्म की रक्षा करनेवाले महारथी वीर वैमा न करेंगे। वे ज़रूर शिखण्डी पर वार करेंगे। पर हम उन लोगों की दाल न गलने देंगे-उनके आक्रमण से हम शिखण्डी को बचाते रहेंगे। इस तरह, जो बात हम चाहते हैं वह सहज ही में शिखण्डी के हाथ से हो जायगी। अर्जुन की यह सलाह कृष्ण और पाण्डवों को पसन्द आ गई । वे लोग बहुत खुश हुए और सोने के लिए अपने अपने डेरों में गये। ___ युद्ध होते नौ दिन हो गये । दसवाँ दिन आया। उस दिन पाण्डवों ने भीष्म के मारने का संकल्प किया और अपनी सेना का एक ऐसा अच्छा व्यूह बनाया जो किसी तरह तोड़ा न जा सके । उसके द्वार की रक्षा का काम उन्होंने शिखण्डी के सिर्पद किया । अर्जुन और भीमसेन व्यूह के दाहिने बायें हुए। अभिमन्यु को उसके पिछले भाग की देख-रेख का काम मिला । जितने सेनाध्यक्ष थे सब अपनी अपनी सेना लेकर इन लोगों को चारों तरफ से घेर कर खड़े हुए। इस तरह बड़ी मजबूती के साथ व्यूह की रचना करके भीष्म पर आक्रमण करने के लिए पाण्डव लोग धीरे धीरे कौरवों की तरफ बढ़ने लगे। ___ अर्जुन अपने गाण्डीव धनुष की प्रत्यंचा की टङ्कार करके धीरे धीरे बाण बरसा कर रास्ता रोकनेवाले कौरव-योद्धाओं को पीड़ित करने लगे । उनके तितर-बितर हो जाने पर पाण्डवों के लिए आगे बढ़ने का रास्ता साफ हो गया। तब दुर्योधन ने भीष्म से कहा :-- हे पितामह ! हमारी सेना शत्रों की मार से बेहद पीड़ित हो रही है। इससे अब आप युद्ध करके उनकी रक्षा कीजिए। भीष्म ने पाण्डवों के व्यूह के आगे शिखण्डी को देख कर दुर्योधन से कहा :- हे राजन् ! हमने यह प्रतिज्ञा की थी कि जहाँ तक हो सकेगा हम पाण्डवों की सेना का नाश करेंगे । उस प्रतिज्ञा का हमने आज तक पालन किया है। आज हम अपनी शक्ति का सबसे भारी परिचय देकर युद्ध के मैदान में प्राण छोड़ेंगे । स्वामी का अन्न जो आज तक हमने खाया है उसके ऋण से आज हम छूट जायेंगे। यह कह कर भीष्म पितामह पाण्डवों की सेना में घुस पड़े। अपनी अद्भुत शक्ति का पूरा परिचय देते हुए उन्होंने सैकड़ों वीरों को जमीन पर सदा के लिए सुलाना प्रारम्भ कर दिया। दुर्योधन भी बहुत बड़ी सेना लेकर भीष्म के साथ हुए और पद पद पर उनकी रक्षा करने लगे। तब पाण्डवों की सेना के बड़े बड़े वीरों से रक्षा किये गये शिखण्डी ने ज्यों ही आगे बढ़ने की चेष्टा की त्यों ही अश्वत्थामा सात्यकि की तरफ़, द्रोणाचार्य धृष्टद्युम्न की तरफ़, और जयद्रथ विराट की तरफ दौड़ पड़े। इस तरह दोनों दलों के रक्षक लोगों के द्वारा परस्पर एक दूसरे की राह रोकी जाने पर महा घोर युद्ध होने लगा। यद्ध के मैदान में सञ्जय सब बातें अपनी आँखों देखते थे और सायङ्काल युद्ध का सच्चा सच्चा हाल धृतराष्ट्र से कहते थे। उस दिन सन्ध्या समय जब वे युद्ध के मैदान से लौटे तब उदास और चिन्ता के डूबे बैठे हुए राजा धृतराष्ट्र से इस प्रकार युद्ध का हाल कहा:-