दूसरा खण्ड] युद्ध जारी २३९ तब काम्बोज और भोजराज ने अर्जुन को वहीं रोक रखना चाहा । भीषण युद्ध छिड़ गया। महाप्रतापी पाण्डुनन्दन के विषम बाणेां के प्रभाव से घोड़ों के समूह घायल होने, जितने रथ थे सब टूटने, और सवारों-समेत हाथियों के झुण्ड के मुण्ड ज़मीन पर गिरने लगे। कौरवों की असंख्य सेना के साथ अकेले अर्जुन ने बड़ा ही भयङ्कर युद्ध किया। पर, एक और अनेक में बहुत अन्तर होता है। टिड्डी दल के समान कौरवों की सेना उनके आगे बढ़ने में विघ्न डालने लगी। यह देख कर अर्जुन को उत्तेजित करने के लिए कृष्ण ने कहा :- हे पृथापुत्र ! इन वीरों पर दया करने की ज़रूरत नहीं । इन्हें यमपुर पठाने में विलम्ब न करो। हमें जो काम आज करना है उसके लिए अब बहुत ही थोड़ा समय रह गया है । यह सुन कर अर्जुन ने बड़े ही वेग से बाण-वर्षा आरम्भ कर दी। वह कृतवर्मा और सुदक्षिण से न सही गई । वे प्रायः मूर्छित हो गये। इस मौके को अच्छा हाथ पाया जान कृष्ण ने रथ को इस तेजी से दौड़ाया कि रथ का देख पड़ना मुश्किल हो गया। भोज और काम्बोज-सेना के नायक कृतवर्मा और सुदक्षिण होश में थे ही नहीं। अतएव इस सेना-समूह को पार करके अर्जुन के रथ को कृष्ण उस तरफ़ आगे निकाल ले गये। दुर्योधन को मालूम हो गया कि अर्जुन शकट-व्यूह से निकल आये और अब सूचि-व्यूह की तरफ़ दौड़े चले आ रहे हैं । इससे वे द्रोणाचार्य के पास पहुँचे और झिड़क कर उनसे कहने लगे:- हे आचार्य ! अर्जुन को आपके सामने ही सेना में घुसते, और सूखे तिनकों के ढेर को आग जैसे जलाती है उस तरह सैनिकों का नाश करते देख हम अपने पक्ष को बिलकुल ही आश्रयहीन समझते हैं। हमें जान पड़ता है कि हमारा कोई भी योग्य सहायक नहीं । जहाँ तक हो सकता है हम आपके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं; हर तरह हम आपको प्रसन्न रखने की चेष्टा करते हैं; परन्तु, आप इस बात का कुछ भी लिहाज़ नहीं करते । हम आपके बहुत बड़े भक्त हैं; परन्तु हमारा नाश करने पर कमर कसनेवाले पाण्डवों पर आप हमेशा ही दया करते हैं । हम न जानते थे कि आप शहद में डूबे हुए छरे की धार के समान हैं। आप यदि अभयदान न देते-आप यदि जयद्रथ से यह न कहते कि डरने की कोई बात नहीं तो हम कभी जयद्रथ को न रोकते । वे कभी के भाग गये होते । श्राप ही के विश्वास दिलाने पर हमने जयद्रथ को आज मौत के मुंह में फेंका है। यह हमसे बड़ी भूल हुई। यदि आप हमें अपने बल-पौरुष का भरोसा न देते तो कभी यह बात न होती । काल के कराल गाल में गया हुआ मनुष्य चाहे बच जाय, पर अर्जुन के सामने जयद्रथ नहीं बच सकते । इस समय हम बड़े दुःखी हैं हम अत्यन्त आते हैं । इससे हम जो यह अंड बंड बक रहे हैं उसके कारण आप हम पर क्रोध न कीजिएगा। सिन्धुराज जयद्रथ आपकी शरण हैं । उन्हें जिस तरह हो सके बचाइए। दुर्योधन के वचन सुन कर द्रोणाचार्य ने कहा :- महाराज ! तुम हमारे पुत्र-तुल्य हो । इससे हम तुम्हारी बात का बुरा नहीं मानते । सच मानो, इस विषय में हमारा कुछ भी अपराध नहीं। श्रीकृष्ण बहुत ही अच्छे सारथि हैं। उनके हाँके हुए घोड़े हवा से बातें करते हैं। इस कारण बहुत थोड़ा सा रास्ता पाने से भी अर्जुन बड़ी तेजी से रथ निकाल ले जाते हैं । हम इस समय बहुत बूढ़े हो गये हैं। पाण्डवों की सेना हमारी सेना के बिलकुल पास श्रा गई है; और हममें अब,इतनी फुरती नहीं रही कि इधर इस सेना को रोकें और उधर अर्जुन को भी आगे न बढ़ने दें। एक बात और है, जिसके कारण हम इस समय अर्जुन के पीछे दौड़ कर उनकी राह नहीं रोक सकते । हमने सबके सामने युधिष्ठिर को पकड़ने की प्रतिज्ञा की है। इस समय युधिष्ठिर की रक्षा करने के लिए. अर्जुन उनके पास नहीं; वे देखो, हमारे सामने ही धर्मराज विराज रहे हैं । अतएव हमें
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