पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२८३

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दूसरा खण्ड] - युद्ध जारी . २५१ अतएव इन्द्र की दी हुई शक्ति चला कर तुम तुरन्त ही इस निशाचर का संहार करो। यह घोर और भयङ्कर रात बीत जाने पर अर्जुन को परास्त करने के लिए हमारे वीरों को आगे बहुत मौके मिल रहेंगे। इससे इस अमोघ शक्ति को उनके लिए व्यर्थ न रख छोड़ कर इससे इस राक्षस को इसी समय मार डालिए। इसे अब और अधिक देर तक जीता न रखिए। इस महा-भयङ्कर रात में कर्ण अपने पक्षवालों की दुखभरी पुकार की उपेक्षा न कर सके। अर्जुन के मारने के लिए बहुत दिनों से बड़े यत्र से रक्खी हुई उस अमोघ शक्ति को उन्हें हाथ में लेना ही पड़ा । बस, उसका छूटना था कि उसने घटोत्कच के हृदय को फाड़ दिया और ऊपर आकाश की तरफ़ उड़ कर इन्द्र के पास लौट गई। कौरव लोग निशाचर घटोत्कच को मरा देख मारे आनन्द के सिंहनाद करने और शङ्ख बजाने लगे। दुर्योधन भी बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कर्ण की यथोचित पूजा की और उन्हें अपने रथ में सवार करा कर सेना में चले गये। परन्तु भीमसेन के पुत्र की मृत्यु के कारण पाण्डवों को शोक से व्याकुल देख कर भी कृष्ण आनन्द-प्रकाश करने लगे। उनके इस काम से पाण्डवों का दुःख दूना हो गया। उनके हृदय पर और भी अधिक चोट लगी। तब अर्जुन ने कृष्ण से कहा :- हे वासुदेव ! पुत्र घटोत्कच की मृत्यु से हम लोग नो मारे शोक के विकल हो रहे हैं; आप क्यों ऐसे कुसमय में खुश हो रहे हैं ? कृष्ण ने कहा :-हे अर्जुन ! इन्द्र की दी हुई महाशक्ति को छोड़ कर कर्ण ने आज बहुत ही अच्छा काम किया है। कर्ण के पास इस महा-अस्त्र के रहते साक्षात् यमराज भी उनका सामना नहीं कर सकते थे। महा-तेजस्वी कर्ण ने अपना कवच और कुण्डल देकर जिस दिन से इस शक्ति को प्राप्त किया था उसी दिन से उन्होंने इसे तुम्हारे मारने के लिए बड़े यत्र से रख छोड़ा था। हे पार्थ ! कर्ण के पास से उस शक्ति के चले जाने से आज तुम उन्हें मरा हुआ समझो। उसी से तुम्हें रोक कर हमने निशाचर घटोत्कच को कर्ण से युद्ध करने भेजा था। यह शक्ति तुम्हारी मृत्यु का कारण थी। अतएव, ज तक इससे बचने का उपाय हम नहीं कर सके तब तक न हमें निद्रा पाई और न हमें किसी प्रकार का हर्ष ही हुआ। आज हमारा कौशल सफल हुआ---आज हमारी युक्ति कारगर हुई। इसी से हमें इस समय आनन्द हो रहा है। कुछ भी हो, इस समय हमारी सेना हाहाकार करती हुई इधर उधर भाग रही है। जान पड़ता है, वीर-शिरोमणि द्रोण उस पर बड़ी निर्दयता से आक्रमण कर रहे हैं। अतएव, हे अर्जुन ! तुम द्रोण के आक्रमण से उसकी रक्षा करो। इस पर युधिष्ठिर ने द्रोण पर धावा करने के लिए अपनी सेना को उत्साहित किया। सैनिक लोग मन ही मन द्रोण को जीतने का प्रण करके अर्जुन के साथ बड़े वेग से दौड़े । यह देख कर राजा दुर्योधन ने बड़े क्रोध में आकर द्रोणाचार्य की रक्षा के लिए बहुत से कौरव-वीरों को आज्ञा दी। किन्तु दोनों तरफ के वीरों के वाहन-हाथी और घोड़े-सारा दिन युद्ध करने के कारण बेहद थक गये थे; और रात अधिक बीत जाने से योद्वा-जनों को नींद भी आ रही थी। इससे वे लोग चेष्टाहीन काठ की तरह युद्ध करने लगे । उनकी यह दशा देख सेनापति अर्जुन ने जोर से पुकार कर कहा :- हे सैनिक वीरो ! रात बहुत बीत गई है। अँधेरा इतना हो गया है कि हाथ मारा नहीं सूझता । इसके सिवा तुम लोग थक भी बहुत गये हो। अतएव थोड़ी देर के लिए युद्ध बन्द करके यहीं लड़ाई के मैदान में सो जाव । कौरवों के सेनापति द्रोण ने भी यह बात मान ली। इस पर कौरवों और पाण्डवों के सैनिक