२६५ दूसरा खण्ड ] अन्त का युद्ध हे दुरात्मा ! तू तो हम पर चोट कर चुका; अब हमारी इस गदा का आघात सिर पर ले। यह कह कर महाबली भीमसेन ने एक बड़ी ही दारुण गदा चलाई । चलाते ही वह बड़े वेग से दुःशासन के सिर पर लगी । उसकी चोट से दुःशासन रथ से कोई बीस गज की दूरी पर जा गिरे। उनका रथ चूर चूर हो गया और घोड़ों की भी चटनी हो गई । दुःशासन में उठने की शक्ति न रही। उनका सारा शरीर थर थर काँपने लगा। वे उसी दशा में जमीन पर लोट गये। उस महाघोर संग्राम भूमि में दुःशासन को गिरा देख, भीमसेन को धृतराष्ट्र की सन्तान के किये हुए सारे अत्याचार याद हो आये । वनवास का क्लेश, द्रौपदी के केशों का खींचा जाना, और वस्त्र- हरण श्रादि सारी विपत्तियाँ उन्हें आज हुई सी जान पड़ने लगीं। भीमसेन क्रोध से लाल हो गये। वे रथ से कूद पड़े और कुछ देर तक दुःशासन को देखते रहे। फिर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए उन्होंने एक तेज धारवाली तलवार निकाली । जमीन पर पड़े हुए दुःशासन पर पैर रख कर उसे उन्होंने उनकी छाती में घसेड़ दिया। घाव से रुधिर की धारा बह निकली। उस गरम गरम रुधिर को उन्होंने अप अंजुली में भर कर, पास ही चित्र के समान चकित खड़े हुए वीरों से कहा :- हे कौरव-गण ! पापी दुःशासन को यमपुरी भेज कर और उसका रुधिर पीकर अाज हम अपनी प्रतिज्ञा से छूट गये। यह महा संग्राम एक प्रकार का यज्ञ है। इसमें दुःशासन-रूप एक पशु का बलिदान हो चुका। दुर्योधन-रूप दूसरे पशु का बलिदान बाक़ी है। उसके भी हो जाने पर यज्ञ समाप्त हो जायगा। इस समय, रुधिर से तर बतर और लाल लाल आँखें किये हुए महा-भयङ्कर-वेशवाले भीमसेन का युद्ध के मैदान में आनन्द से इधर उधर घूमते देख किसी किसी कौरव-योद्धा के हाथ से हथियार छूट पड़े किसी किसी ने आँखें बन्द करके मुँह फैला दिया; कोई कोई डर से धीरे धीरे चिल्लाने लगा। कुछ देर में सैनिकों ने भयभीत होकर भागना शुरू कर दिया। इसी अवसर पर युधिष्ठिर के पास से अर्जुन युद्ध-भूमि में आ पहुँचे। इधर से ये और उधर से कर्ण शत्रओं का संहार करते करते एक दूसरे के सामने आने के लिए आगे बढ़ने लगे। इन दोनों वीरों की मार से दोनों पक्षों की चतुरङ्गिनी सेना विकल होकर, सिंह से पीछा किये गये हिरनों के मुण्ड की तरह, चारों तरफ भागने लगी । हाथी के चिह्नवाला कर्ण का और बन्दर के चिह्नवाला अर्जुन का रथ घोर घरघराहट करते हुए एक दूसरे की तरफ बड़े वेग से दौड़ने लगा। यह देख कर राजा लोगों को बड़ा विस्मय हुआ। सिंहनाद करके वे दोनों वीरों की प्रशंसा करने लगे। कर्ण का उत्साह बढ़ाने के लिए कौरवों ने चारों ओर से मारू बाजा बजाना आरम्भ किया । यह देख कर पाण्डवों ने भी अर्जुन की उत्तेजना के लिए शङ्ख और तुरुही श्रादि बजा कर पृथ्वी और आकाश एक कर दिया। इसके अनन्तर, बड़े बड़े दाँतोंवाले मतवाले हाथी जिस तरह किसी हथिनी को पाने के लिए परस्पर टक्करें मारते हैं उसी तरह कर्ण और अर्जुन एक दूसरे से भिड़ गये। पहले महावीर कर्ण ने दस बाणों से अर्जुन को छेद दिया । तब अर्जुन ने भी हँस कर बड़े ही तेज़ धार-वाले दस बाण कर्ण की छाती पर मारे। तदन्तर उन दोनों विख्यात वीरों ने अनगिनत बाणों से परस्पर को घायल किया। इस समय द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने दुर्योधन का हाथ पकड़ कर कहा:- महाराज ! बस अब युद्ध बन्द करो। जिस युद्ध में महारथी भीष्म और अस्त्र-विद्या के सर्वोत्तम ज्ञाता हमारे पिता को प्राण छोड़ने पड़े उस युद्ध को धिक्कार है ! हम और हमारे मामा कृपाचार्य्य सिर्फ इसलिए जीते हैं कि हम अवध्य हैं किसी के हाथ से हम मर नहीं सकते । कर्ण के मारे जाने से तुम भी फा० ३४
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