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सचित्र महाभारत [पहला खण्ड तरह सेवा करने के लिए उपदेश दिया। अम्बिका ने मन में समझा कि मेरे देवर का रूप भी भीष्म और दूसरे राजपुरुषों की तरह मनोहर होगा । इससे वह मन ही मन आनन्दित होकर वेदव्यास की सेवा करने की तैयारी में लगी। किन्तु जब वह वेदव्यास के पास गई तब उसने देखा कि उनका रङ्ग बेतरह काला है, तपस्या करने से शरीर पत्थर की तरह कठोर हो गया है, मुँह पर झुरियाँ पड़ी हुई हैं, बड़ी बड़ी जटायें लटक रही हैं। इससे वह घबरा गई। मारे डर के उसने अपनी आँखें मूंद लीं। इस कारण व्यासदेव कुछ अप्रसन्न हुए। माता से प्रतिज्ञा करने और अम्बिका की सेवा से सन्तुष्ट होने से यद्यपि व्यासदेव ने अम्बिका को पुत्र दिया, तथापि उन्होंने यह भी कह दिया कि इसके जो पुत्र होगा वह अन्धा होगा । समय आने पर अम्बिका के एक अन्धा पुत्र हुआ। उसका नाम धृतराष्ट्र पड़ा। इसके अनन्तर सत्यवती ने छोटी बहू अम्बालिका को अच्छी तरह समझा बुझाकर व्यासदेव की सेवा के लिए उनके पास भेजा । परन्तु देवर की विकट मूर्ति देख कर अम्बालिका भी डर गई। कुछ देर के लिए उसका मुँह पीला पड़ गया। इससे अम्बालिका को भी अच्छी तरह मन में प्रसन्न होकर व्यासजी ने पुत्र न दिया। उन्होंने कहा, इसे जो पुत्र होगा वह पाण्डु-वर्ण होगा; उसका रंग फीका फीका, कुछ पीलापन लिये हुए होगा । यथासमय अम्बालिका के यह पुत्र हुआ। उसके रंग के अनुसार उसका नाम पाण्डु पड़ा। दो में से एक भी पुत्र सर्वाङ्गसुन्दर हुआ न देख सत्यवती को सन्तोष न हुआ। उसने फिर जेठी बहू को देवर के पास जाकर पुत्र की भिक्षा माँगने के लिए बहुत कुछ कहा । पर देवर के पास फिर जाने को अम्बिका का जी किसी तरह न चाहा । उसने एक दासी को अपने कपड़े और गहने पहना कर खूब सजाया और उसी को देवर के पास भेज दिया । दासी ने व्यासदेव की बहुत ही अच्छी तरह सेवा की। उससे वे अत्यन्त प्रसन्न हुए और विदुर नाम का एक सुन्दर और सब अङ्गों से पूर्ण पुत्र दिया। उन्होंने यह भी कहा कि यह पुत्र बड़ा बुद्धिमान और धार्मिक होगा। धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर का सगे भाई की तरह एक ही साथ लालन-पालन होने लगा। वे सब एक ही साथ राजभवन में रहने लगे। २–पाण्डवों और धृतराष्ट्र के पुत्रों की जन्म-कथा कुरु के वंश में धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर इन तीनों राजकुमारों के जन्म लेने पर उनके राज्य में कुरु-जाङ्गल, कुरव और कुरुक्षेत्र ये जो कई एक सूबे थे उनमें सुख, ऐश्वर्य और धन-धान्य आदि की बहुत ही बढ़ती हुई । समय पर पानी बरसने के कारण अन्न खूब होने लगा। नगर व्यापारियों और कारीगरों से भर गये । बनिज-व्यापार बहुत चमक उठा। प्रजा में धम्मे की अधिक वृद्वि हुइ। सब लोग अपना अपना कर्म पहले से अधिक अच्छी तरह करने लगे। परस्पर प्रीति बहुत बढ़ गई। प्रजा के दिन आनन्दपूर्वक बीतने लगे। सब लोग स्वच्छन्दता से रहने लगे। महात्मा भीष्म तीनों राजकुमारों को पुत्र की तरह पालने-पोसने लगे । क्रम क्रम से उन्होंने उन तीनों के जातकर्म आदि सब संस्कार किये । युवा होने पर धनुर्वेद अर्थात् बाण चलाना, तलवार चलाना, गदायुद्ध करना, कसरत करना, राजशिक्षा, राजनीति, इतिहास, पुराण, वेद, वेदाङ्ग आदि सब शास्त्रों और विद्याओं में वे प्रवीण हो गये। धनुर्विद्या में पाण्डु बड़े नामी हुए। बल में धृतराष्ट्र का नंबर ऊँचा रहा । राजनीति और धर्म की बातों में विदुर की बराबरी करनेवाला त्रिभुवन में भी कोई न रह गया। जो कुरुवंश नष्ट होने को था उसमें ऐसे ऐसे योग्य कुमार उत्पन्न होने से फिर उसकी आशालता लहलहाने लगी। यह देख कर सबको परमानन्द हुआ।