पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/२९

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पहला खण्ड] वंशावली को देख कर भगवान् शङ्कर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपना रूप धारण करके अम्बा को दर्शन दिया और बोले :-- भद्रे ! जिस वर की तुम्हें इच्छा हो माँगा। . अम्बा ने कहा--त्रिशूलपाणि शङ्कर ! मैं आपसे यह वर चाहती हूँ कि मैं भीष्म के वध-साधन में समर्थ हाऊँ। महादेव ने 'तथास्तु' कहा ! वे बोले-जा ऐसा ही होगा। इतना कह कर वे अन्तर्धान हो गये। ___ यह वर महादेव से पाकर अम्बा ने एक चिता बनाई और उसी में जल मरी। दूसरे जन्म में वह राजा द्रुपद की कन्या शिखण्डिनी हुई और एक दानव के वरदान के प्रभाव से स्त्री से पुरुष होकर भीष्म की मृत्यु का कारण हुई। ____ इधर विचित्रवीर्य्य परम सुन्दरी अम्बिका और अम्बालिका के साथ सुख से दिन बिताने लगे। इस तरह सात आठ वर्ष बिना किसी विन-बाधा के बीत गये। इसके अनन्तर उन्हें राजयक्ष्मा, रोग हआ। उसने यवावस्था ही में उनकी जान ले ली। माता सत्यवती पत्र के शोक से बहुत व्याकुल हुई । उसके सबसे अधिक दुःख का कारण यह हुआ कि उसके किसी पुत्र के सन्तान न थी। दोनों निःसन्तान ही परलोक गये। रहे भीष्म, सो उनकी प्रतिज्ञा जन्म भर अविवाहित रहने की थी। बिना सन्तान के राज्य की रक्षा कैसे हो सकती थी ? यह सोच कर सब लोग बड़े असमंजस में पड़े। अन्त में एक दिन भीष्म को बहुत ही व्याकुल और चिन्ता में डूबे हुए देख कर सत्यवती ने उन्हें बुला कर इस प्रकार कहना प्रारम्भ किया : पुत्र ! तुमसे एक बात मैंने आज तक छिपा रक्खी थी। उस मैं आज कहती हूँ, सुनो। 'तुम्हारे पिता के साथ मेरा विवाह होने के पहले मैं यमुना में पिता की नाव चलाया करती थी। मेरे पिता बड़े धर्मवान् थे। उन्होंने आज्ञा दी थी कि मैं बिना उतराई लिये ही मुसाफिरों को पार उतारा करूँ। एक दिन मैंने महर्षि पराशर को इसी तरह पार उतारा। वे मुझ पर बहुत प्रसन्न हुए और मुझे एक पुत्र दिया । उस समय मेरे बदन से मछली की दुर्गन्धि अाती थी। उसे दूर करके उसके बदले यह अत्यन्त मनोहर सुगन्धि उन्हीं की दी हुई है। महर्षि का दिया हुआ वह पुत्र यमुना के द्वीप ( टापू) में मुझसे पैदा हुआ । इस कारण उसका एक नाम द्वैपायन भी पड़ गया । तुम्हारे इसी महा-बुद्धिमान और महा-पंडित भाई ने चारों वेदों के अलग अलग विभाग किये। इससे उसका दूसरा नाम वेदव्यास हा। मझसे बिदा होते समय उसने कहा था_हे माता । यदि कभी तुम्हें कोई संकट पड़े तो तुम मेरा स्मरण करना । इससे इस समय जो यह विपद् हम पर पड़ी है उससे उद्धार होने के लिए हमें उसका स्मरण करना चाहिए। माता से ऐसे गुणवान् भाई की बात सुन कर भीष्म बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने माता से प्रार्थना की कि शीघ्र ही वेदव्यास का स्मरण करके उनसे सहायता माँगिए । सत्यवती ने द्वैपायन का स्मरण किया । स्मरण करते ही वे उसी क्षण माता के सामने आकर उपस्थित हुए । माता की विपद् की सारी कथा उन्होंने ध्यान से सुनी और परलोक गये हुए विचित्रवीर्य की दोनों स्त्रियों को पुत्र देने के लिए तैयार हए। द्वैपायन का रूप भयानक और कुछ काला था। उनका डील-डौल था। इससे उन्होंने कहा कि यदि हमारी भाभी हमारे रूप-रंग की परवा न करके प्रसन्नतापूर्वक हमारी सेवा कर सकेंगी तो शीघ्र ही उनके पुत्र होगा। पुत्र की बात सुन कर सत्यवती को बहुत धीरज पाया । वह प्रसन्न हो गई । पहले वह जेठी बहू अम्बिका के पास गई। उससे उसने सारा हाल कह सुनाया और देवर वेदव्यास की अच्छी फा०२ वना