पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३०४

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२७२ सचित्र महाभारत ___ तब महावीर कृप ने छः बाण धनुष पर जोड़े और युधिष्ठिर के सारथि को मार गिराया। यह देखते ही महाबली भीमसेन ने शल्य के धनुष के दो टुकड़े करके उनके घोड़ों को मार डाला। साथ ही धृष्टद्युम्न, शिखण्डी और मात्यकि आदि वीरों ने पैने पैने बाणों की वर्षा करके शल्य को सब तरफ से तोप दिया। इस बाण-वर्षा से शल्य घबरा उठे; उनके होश उड़ गये। बे-घोड़ों के रथ से वे उतर पड़े और ढाल-तलवार लेकर युधिष्ठिर की तरफ दौड़े। वे कुछ ही दूर आगे बढ़े होंगे कि भीमसेन ने उन्हें देखा। वे समझ गये कि अब युधिष्ठर पर आफत आई । इससे उन्होंने शल्य की ढाल-तलवार बीच ही में अपने तीक्ष्ण बाणों से काट डाली। महा-तेजस्वी भीमसेन को ऐसा अद्भुत काम करते देख पाण्डव लोग आनन्द से फूल उठे और बार बार सिंहनाद करने लगे। परन्तु, हथियार पास न रहने पर भी मद्रराज ने युधिष्ठिर पर आक्रमण करने का विचार न छोड़ा। वे खाली हाथ ही उनकी तरफ दौड़े। इस पर धर्मराज क्रोध से जल उठे। उन्होंने एक प्रचण्ड शक्ति हाथ में लेकर उसे बड़े प्रयत्न से शल्य पर छोड़ा और हाथ उठा कर खूब गरजते हुए कहा :--- हे मद्रराज ! इस दफे तुम्हारे प्राण गये।। यह शक्ति शल्य की छाती फाड़ती हुई भीतर तक चली गई। उससे उनके मर्मस्थल कट गये । रुधिर से उनका सारा शरीर भीग गया। दोनों भुजायें फैला कर वे भूमि पर गिर पड़े। होम हो चुकने पर शान्त हुई अग्नि की तरह महारथी शल्य पृथ्वी पर सदा के लिए सो गये। सेनापति के मारे जाने से कौरवों की सेना में हाहाकार होने लगा। सेना तितर बितर होकर भागने लगी। घबरा का सैनिकों के भागने से युद्ध के मैदान में इतनी धूल उड़ी कि कुछ भी न दिखाई देने लगा। सब तरफ अन्धकार छा गया। ___ पाण्डवों ने जो देखा कि कौरवों की सेना घबरा कर इधर उधर भाग रही है तो उनका उत्साह दूना हो गया। वे बड़े प्रसन्न हुए और उसका मंहार करने के लिए दौड़े। तब दुर्योधन ने अपने सारथि से कहा :- हे सूत ! धनुर्धारी अर्जुन हमारी सेना पर आक्रमण करने की चेष्टा कर रहे हैं। इससे हमारे ग्थ को, इस समय, सैनिकों के पीछे ले चलो । युद्ध-भूमि में हमें युद्ध करते देख सैनिक लोग ज़रूर ही लौट आवेंगे। दुर्योधन ने यह बात वीरों के योग्य ही कही । इससे सारथि ने उनकी आज्ञा का तत्काल पालन किया । पैदल सेना ने राजा को अकेले युद्ध करते देख, उन्हें असहाय अवस्था में छोड़ जाना उचित न समझा । इससे वह लौट आई और फिर युद्ध के मैदान में डट गइ । दुर्योधन ने जो बात सोची थी वह सच निकली। कौरव-पक्ष के योद्धाओं ने जीने की आशा छोड़ कर फिर युद्ध प्रारम्भ किया । अर्जुन के ऊपर फिर बाण-वर्षा होने लगी। किन्तु गाण्डीव की बदौलत अर्जुन ने उन लोगों के सारे अस्त्र-शस्त्र सहज ही में व्यर्थ कर दिये । उनकी एक भी न चली। अर्जुन के वन समान बाण आकाश से गिरी हुई जल-धारा की तरह कौरवों पर बरसने लगे। उन्हें वे लोग किसी तरह न सह सके। कोई बे-रथ और बे-घोड़े के हो गये; किसी के अस्त्र-शस्त्र टुकड़े टुकड़े हो गये; कोई गहरी घोट लगने से मूर्छित हो गये; और कोई कोई फिर भाग निकले। कुछ वीरों ने डेरों में जाकर रथ और हथियार आदि युद्ध का सामान लिया और फिर युद्ध करने चले। इस समय धृतराष्ट्र के सिर्फ बारह पुत्र बच रहे थे। उन्होंने मिल कर एक ही साथ भीमसेन पर आक्रमण किया। वीर-शिरोमणि भीमसेन ने क्रोध में आकर अपने पैने बाणों से किसी का सिर काट