पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३२३

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दूसरा खण्ड ] युद्ध के बाद की बातें २९१ बेटी ! युद्ध के पहले तुम्हीं ने दुर्योधन से कहा था कि जहाँ धर्म होता है वहीं जीत होती है । महात्मा पाण्डवों ने इस भयङ्कर युद्ध में असंख्य राजों को मार कर तुम्हारी ही बात सत्य सिद्ध की है । इसलिए धर्म का और अपनी बात का खयाल करके क्रोध न करो। हे पुत्री ! तुम सदा ही से दूसरों की भलाई किया करती रही हो। फिर इस समय पाण्डवों की बुराई क्यों चाहती हो ? हम तुम्हें वर देते हैं कि आँखें ढके रखने का व्रत पालन करके भी तुम स्वर्गवासी अपने प्यारे कुटुम्बीय और आत्मीय वीरों के कुरुक्षेत्र में पड़े हुए शरीर देख सकोगी। यशस्विनी गान्धारी ने दुखी होकर उत्तर दिया :- भगवन् ! मैं पाण्डवों का अनिष्ट नहीं चाहती । पर पुत्रों के शोक से बड़ी व्याकुल हूँ। तब काँपते हुए धर्मराज ने पास जाकर हाथ जोड़ कर कहा :- हे देवी ! हमी ने आपके पुत्रों को मारा है और हमी ने राज्य नाश किया है । हम बड़े निर्दयी हैं। इसलिए हमें शाप दीजिए । जब अपन आत्मीय जनों की मृत्यु का कारण हमी हैं तब हमें राज्य, धन या जीवन कुछ भी न चाहिए। धर्मराज को अत्यन्त दुखी देख गान्धारी का क्रोध जाता रहा । उन्होंने भी माता की तरह स्नेहपूर्वक पाण्डवों से बातचीत की और उन्हें धीरज दिया। इसके बाद पाण्डव लोग कुन्ती के पास गये । कुन्ती ने कपड़े से मुंह ढक लिया और पुत्रों के घायल शरीर पर बार बार हाथ फेर कर रोने लगीं। थोड़ी देर बाद आँसुओं से भीगी हुई पुत्रहीना द्रौपदी को ज़मीन पर पड़ी देख उन्होंने उसे उठाया और उससे मिल कर विलाप करने लगीं। द्रौपदी ने कहा :- आर्ये ! अभिमन्यु और मेरे पुत्र इस समय कहाँ हैं ? विजय प्राप्त करके आपको प्रणाम करने तो वे नहीं आये ? हाय ! मैं पुत्रहीना हो गई। अब मैं राज्य लेकर क्या करूँगी। तब यशस्विनी गान्धारी ने वहाँ आकर द्रौपदी से कहा :- बेटी ! तुम और शोक न करो। तुम्हारी तरह मैं भी पुत्रहीना हो गई हूँ। अपने ही दोष से हम लोगों को इतना दुःख उठाना पड़ा है । यदि तुम शोक करोगी तो मुझे कौन धीरज देगा। ____ तब युधिष्ठिर आदि पाण्डव लोग कृष्ण और धृतराष्ट्र को आगे करके स्त्रियों के साथ लड़ाई के मैदान में गये। कुरुक्षेत्र पहुँच कर अभागिनी पाञ्चाल और कौरव-नारियों ने देखा कि किसी के भाई, किसी के पुत्र, किसी के पिता, किसी के पति, गीध और सियारों से भरे हुए उस भयङ्कर स्थान में जमीन पर मरे पड़े हैं । श्मशान की तरह वह युद्ध-स्थल देखते ही हाहाकार करके वे रथ से गिरने लगीं। महात्मा व्यास के वर से गान्धारी को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गई थी। उन्होंने कृष्ण से कहा :- बेटा ! वह देखो, बाल बिखराये और घबराई हुई हमारी बहुएँ अपने अपने पति, पुत्र, पिता और भाइयों को याद करके उनकी लोथों की तरफ़ दौड़ी जा रही हैं। यह देखो, लड़ाई का मैदान पुत्रहीना वीर-माताओं और पतिहीना वीर-पत्नियों से भर गया। हाय ! दुर्योधन के हितैषी इन वीरों को आज सियार और कुत्ते खा रहे हैं । यह देखो ! साक्षात् यम के समान जिस महा-पराक्रमी बालक ने, निस्सहाय होकर भी, प्राचार्य की मोर्चाबन्दी को तोड़ डाला था वही महावीर अभिमन्यु इस समय स्वयं यमराज के वश में है । अहा ! मरने पर भी अर्जुन का पुत्र निस्तेज नहीं हुआ। देखो ! अनिन्दनीय विराट-पुत्री उत्तरा अभिमन्यु का सिर अपनी गोद में रख कर खून से भीगे हुए उसके बाल सँवार रही है और मानो उसे जीवित समझ कर पूछ रही है :-