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३१० सचित्र महाभारत [दूसरा खण्ड शोभायमान रथ पर सवार होकर उन्होंने पिता पर आक्रमण किया। अर्जुन भी प्रसन्न होकर पुत्र पर बाण बरसाने लगे। धीरे धीरे पिता-पुत्र का वह युद्ध देवासुर-संग्राम की तरह भयङ्कर हो उठा। एक बार मौका पाकर बभ्रुवाहन ने एक बाण से अर्जुन को ऐसा घायल किया कि उसकी चोट से वे गाण्डीव के सहारे बैठ गये और कुछ देर के लिए प्रायः बे-होश हो गये । होश आने पर उन्होंने हँस कर कहा : पुत्र ! तुम्हारा युद्ध देख कर हम बड़े प्रसन्न हुए । अब हम बाण बरसाते हैं; तुम अपनी रक्षा का यत्न करो। यह कह कर अर्जुन ने बभ्रुवाहन के रथ की ध्वजा काट दी और चारों घोड़े मार गिराये । इससे बभ्रुवाहन को बड़ा क्रोध आया। वे रथ से कूद पड़े और पिता से लड़ने लगे। लड़कपन में आकर उन्होंने पिता की छाती में एक तेज़ बाण मारा । वह बाण अर्जुन की छाती में घुस गया; इससे वे ज़मीन पर गिर पड़े। बभ्रुवाहन और अर्जुन दोनों बारणों से घायल हो गये थे। पिता को मरा देख बभ्रुवाहन भी बे-होश हो गये और ज़मीन पर गिर पड़े। बभ्रुवाहन की माता चित्राङ्गदा दोनों वीरों के गिरने की खबर पाते ही शीघ्र ही लड़ाई के मैदान में आई । वहाँ सब हाल सुन कर वह महा दुखी हुई । उलूपी का नाम लेकर वह इस प्रकार विलाप करने लगी : तुम्हीं इन महावीरों के मरने का कारण हो । हाय ! तुमने पुत्र के हाथ से पिता का वध कराया। यही तुम्हारा पातिव्रत है ! यही तुम्हारा धर्म-ज्ञान है ! कुछ भी हो, तुम्हारी मनोकामना सिद्ध हो गई। पर मैं सच कहती हूँ कि यदि तुम मेरे पति को फिर न जिला दोगी तो मैं यहीं भूखी-प्यासी पड़ी रह कर मर जाऊँगी। इस तरह रोकर उसने स्वामी के पैर पकड़ लिए और चुप बैठ गई। इतने में बभ्रुवाहन को होश आया। वे उठ बैठे और माता को मरने के लिए तैयार देख बोले : हाय ! हमने पुत्र होकर अपने हाथ से पिता को मार डाला । हमको धिक्कार है ! अब ब्राह्मण लोग बतलावें कि पिता के इस निर्दयी हत्यारे को कौन प्रायश्चित्त करना होगा। अरे, क्या इस पाप का भी कोई प्रायश्चित्त हो सकता है ? हे नाग-नन्दिनी ! आज अर्जुन को मार कर हमने तुम्हारे मन का काम किया । अब पिता के साथ हमें भी मरा देख कर तुम खूब प्रसन्न होगी। __यह कह कर महात्मा बभ्रुवाहन ने आचमन किया और भूखे प्यासे पड़े रह कर मरने के लिए वहीं माता के पास बैठ गये । सबको इतना दुखी देख नागकन्या ने नागलोक की सञ्जीवनी मणि का स्मरण किया। स्मरण करते ही वह उसके हाथ में आ गई । तब उसने बभ्रुवाहन से कहा : बेटा ! शोक मत करो; उठो । मैंने युद्ध करने को तुमसे इसलिए कहा था जिसमें तुम्हारे पराक्रम को देख कर तुम्हारे पिता प्रसन्न हों। इससे तुम्हें जरा भी पाप नहीं छू गया। इस मणि को अब तुम अपने पिता की छाती पर रख दो; वे फिर जी उठेंगे। ___यह सुन कर महा पराक्रमी बभ्रुवाहन बड़े खुश हुए। उन्होंने वह मणि ले ली और ज्यों ही उसे अर्जुन की छाती पर रक्खा त्यों ही वे सोकर जगे हुए मनुष्य की तरह दोनों आँखें मल कर उठ बैठे । सबको चारों तरफ चकित खड़े देख कर उन्होंने बभ्रुवाहन को छाती से लगाया और विस्मित होकर पूछा : हे पुत्र ! इस रणक्षेत्र में कोई तो हर्ष में, कोई शोक में, और कोई विस्मय में मग्न है-इसका क्या कारण है ? तुम्हारी माता चित्राङ्गदा और नागकन्या उलूपी इस समर-भूमि में क्यों आई हैं ?