पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३६१

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दूसरा खण्ड ] महाप्रस्थान ३२९ वीरों से शून्य पड़ी है। बार बार चिन्ता करने पर भी इस बात पर हमें विश्वास नहीं होता कि कृष्ण अब जीवित नहीं हैं। परन्तु हे महात्मा ! इससे बढ़ कर एक और शोचनीय घटना हुई है जिससे हमारी छाती फटी जाती है। हम जब यादव-स्त्रियों को द्वारका से इन्द्रप्रस्थ लिये आते थे तब पजाब में बहुत से डाकुओं ने हम पर आक्रमण किया और हमारे सामने ही बहुत सी स्त्रियों को उठा ले गये। युद्र के समय पहले जो महापुरुष हमारे रथ के आगे बैठ कर हमारी जय-घोषणा करते थे, मालूम होता है उन्हीं के न रहने से हमारा गाण्डीव व्यर्थ हो गया। जो हो, अब हम जीना नहीं चाहते । हममें न तो अब वीरता ही है और न जोश ही है। इसलिए बतलाइए कि अब हम क्या करें। अर्जुन का विलाप सुन कर महाबुद्धिमान् व्यासदेव ने उन्हें धीरज दिया और कहा :- बेटा ! यादवों के जिस दुराचार के कारण ब्रह्मशाप हुआ था उसके परिणाम को अमिट जान कर बुद्धिमान कृष्ण ने उसके रोकने की चेष्टा नहीं की, और अन्त में स्वयं यह लोक त्याग कर मुक्ति- लाभ किया। इससे तुम अब वृथा दुखी मत हो। तुम लोग भी बड़े बड़े देवकार्य करने के लिए इस लोक में आये थे । पृथवी का पाप-भार हलका करने में तुम लोग सफल हुए हो। मालूम होता है, अब तुम्हारा काम समाप्त हो गया है । इसलिए अब तुममें तेज नहीं रहा । काल ही के प्रभाव से सब कुछ उत्पन्न होता है और काल ही के प्रभाव से सब कुछ नष्ट भी होता है । अब तुम लोगों के स्वर्ग जाने का समय आ गया है, इसलिए उसके लिए उद्योग करना चाहिए । ____ महर्षि वेदव्यास की बात सुन कर वीरवर अर्जुन को धीरज हुआ। तब हस्तिनापुर जाकर उन्होंने धर्मराज से यदुवंश के नाश होने के सम्बन्ध की सब घटनायें आदि से अन्त तक कह सुनाई। १२-महाप्रस्थान अर्जुन के मुँह से यदुवंश के नाश और कृष्ण के स्वर्गवासी होने का हाल सुन कर धर्मराज युधिष्ठिर ने सिर्फ यह कहा :- भाई ! काल आने पर सभी का अन्त होता है। मालूम होता है कि अब हम लोगों का भी काल आ गया। इससे अब महाप्रस्थान की तैयारी करना चाहिए । सब भाइयों ने यह बात मान ली और युधिष्ठिर के महाप्रस्थान की इच्छा का अनुमोदन किया । तब धर्मराज ने परीक्षित को राजगद्दी देकर वेश्या के पुत्र युयुत्सु को राज-काज करने की आज्ञा दी। फिर उन्होंने सुभद्रा से कहा :- भद्रे ! तुम्हारा यह पौत्र कौरव-राज्य का स्वामी हुआ। कृष्ण के पौत्र को तो हमने पहले ही इन्द्रप्रस्थ का राजा बना दिया है । तुम इन दोनों बालकों पर एक सी दृष्टि रखना । फा०४२