पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/३६०

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३२८ सचित्र महाभारत [ दूसरा खया सारे शास्त्रोक्त कर्म ठीक ठीक करके और यादवों की शोकाकुल नारियों को घोड़े, बैल, और ऊँट जुते हुए रथों पर सवार कराके महावीर अर्जुन ने सातवें दिन इन्द्रप्रस्थ की ओर यात्रा की। अर्जुन के कहने के अनुसार नौकर, योद्धा और पुरवासी लोगों ने कृष्ण के पौत्र वन को आगे किया और स्त्रियों को घेर कर द्वारका से चले। इस समय सब लोगों को यह देख कर बड़ा विस्मय हुआ कि उन लोगों के निकलते ही समुद्र द्वारकापुरी को धीरे धीरे डुबोने लगा। कुछ दिन बाद दल-बल-समेत अर्जुन धन-धान्य-सम्पन्न पजाब में पहुँचे । यहाँ अहीरों के एक दल ने धन-रत्न समेत इतने वृद्ध, बालक और स्त्रियों को थोड़े से रक्षकों द्वारा घिरा हुआ देख कर उन्हें लूट लेने का इरादा किया और हाथ में लाठियाँ ले लेकर उन पर टूट पड़े। उन लोगों को अधिक संख्या में देख कर द्वारकावासियों के हाथ पैर ढीले पड़ गये। अर्जुन के डराने पर भी वे लोग बराबर आक्रमण करते रहे। तब क्रोध में आकर अर्जुन गाण्डीव चढ़ाने का तैयार हुए पर उन्हें मालूम हुआ कि अब उनकी शोकजर्जरित देह में पहले का सा बल नहीं है। खैर; गाण्डीव किसी तरह चढ़ तो गया; परन्तु उनकी समझ में यही न पाया कि दिव्य अस्त्र कैसे चलावें । इस पर बाण लगा कर वे लुटेरों के पीछे दौड़े। परन्तु, पहले, गाण्डीव से निकले हुए काले नाग के समान जो बाण शत्र का खून चूस कर जमीन में घुस जाते थे वे आज बिलकुल ही व्यर्थ गये । अन्त में अहीर लोग अर्जुन के सामने ही स्त्रियों को उठा ले जाने लगे । काई कोई स्त्रियाँ तो अपनी इच्छा ही से लुटेरों के पास चली गई। जब अत्यन्त व्याकुल अर्जुन ने देखा कि उनकी भुजाओं की वीरता नष्ट हो गई और उनके सब अस्त्र निष्फल हो गये तब वे इसे ईश्वरी गति समझ कर चुप हो गये। खैर, किसी तरह बची हुई स्त्रियों और रन आदि को लेकर वे कुरुक्षेत्र पहुँचे और भोजराज के पुत्र तथा भोज-स्त्रियों को वहाँ ठहरा दिया। फिर सात्यकि के पुत्र और परिवार को सरस्वती नगरी रहने को दी । अन्त में इन्द्रप्रस्थ का राज्य कृष्ण के पौत्र वज्र को सौंप कर बचे हुए बालक, वृद्ध और स्त्रियों को उनके आश्रय में कर दिया । किसी किसी विधवा स्त्री ने अमि में जल कर प्राण दे दिये । कोई संन्यास लेकर तपस्या करने लगी। किसी तरह यह इतना बड़ा काम करके अर्जुन लजाते हुए व्यास के आश्रम में गये। वहाँ उन्होंने महर्षि को ध्यान में मग्न देखा । इससे वे अपना परिचय देने लगे :- भगवन् ! हम अर्जुन हैं; आपके पास आये हैं। महात्मा व्यास ने देखा कि उनका प्यारा पौत्र अत्यन्त दीन अवस्था में है, इसलिए उन्होंने पूछा :- बेटा ! तुम्हें तो हमने इतना निस्तेज कभी नहीं देखा । क्या तुमने कोई पाप-कर्म किया है या किसी से परास्त हुए हो ? यदि कहने में कोई हानि न हो तो बतलाओ तुम्हारी इस दशा का क्या कारण है ? इसके उत्तर में अर्जुन ने कहा :- । भगवन् ! मनोहर कान्तिवाले, कमल के समान नेत्रोंवाले, श्याम वर्ण हमारे प्रिय मित्र कृष्ण का स्वर्गवास हो गया है । भोज, वृष्णि और अन्धक वंश के जो वीर सिंह के समान पराक्रमी थे उन्होंने ब्रह्मशाप के कारण प्रभासतीर्थ में एक दूसरे को साधारण तिनकों से मार डाला। इस समय द्वारकापुरी