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पहला खण्ड ] पाण्डवों और धृतराष्ट्र के पुत्रों की जन्म-कथा वह जोर जोर रोने और विलाप करने लगी। उसका रोना सुनकर उसके दोनों पुत्र, कुन्ती और कुन्ती के भी पुत्र बहुत जल्द दौड़ते हुए माद्री के पास आये। कुन्ती को देख कर माद्री ने बड़े दुःख से कहा : हे आये ! बच्चों को दूर छोड़ कर तुम अकेली यहाँ मेरे पास आओ। कुन्ती ने जाकर देखा, पति का शरीर बिना प्राणों का पड़ा है। उसने अपने सिर पर हाथ दे मारा। छाती पीटने लगी। बहुत देर तक माद्री के साथ विलाप करती रही। दुःख का वेग कुछ कम होने पर कुन्ती ने माद्री से कहा : बहन ! जो कुछ होनहार था हो गया। मैं अपने राजपि पति की जेठी स्त्री हूँ। इससे मैं ही इनके साथ परलोक जाने का अधिकार रखनी हूँ। तुम उठो। मेरे पीछे सन्तान का पालन बड़ी सावधानता स करना। इसके उत्तर में माद्री बोली : आर्थे ! मेरे ही सङ्ग में स्वामी ने प्राण लोड़े हैं। इससे मैं ही इनके साथ जाऊँगी। इसके सिवा सन्तान का लालन-पालन आप जैसा अच्छा कर सकेंगी मुझसे न होगा । इस कारण, आप मुझे ही पति के साथ जाने की आज्ञा दें। सतना का कर माद्री फिर पति के मृतक शरीर से लिपट गई। और प्राण छोड़ दिये। राजपि पाण्डु और उनकी पत्नी माद्री ने इस प्रकार एक ही साथ परलोक की राह ली। तब उस वन में जितने वनवागी ऋपि और मुनि थे सबने यह सोचा कि जब तक पाण्डु इस वन में रहे हमारं ही आश्रम में रहे। इससे उनकी स्त्री, पुत्र और मृतक देह को हस्तिनापुर ले जाना हमारा काम है । यह सोच कर उन्होंने पाण्डु के शरीर और पाँवों पाए इवों को साथ लेकर हस्तिापुर की यात्रा की । पुत्रों को जी-जान से प्यार करनेवाली विधवा कुन्ती ने उनका मुँह देख देख कर किसी तरह अपने मन को धीरज दिया; और बहुत दिनों के पीरे अपने कुटुम्बी जनों को देखने की लालसा से, पुत्रों को साथ लिगे हुए. सबकं यागे आगे चली। ___ यथासमय इन लोगों के आने की खबर हस्तिनापुर पहुँची। तब भीष्म आदि बड़े बूढ़े कौरव, सत्यवर्ता आदि मातायें, दुयोधन आदि बालक तथा नगरनिवासी और प्रजा-जन व्याकुल-चित्त आगे होकर ऋषियो से मिलने आये । भीष्म ने ऋपियों के पैर धोये, उन्हें जल पिलाया, और प्रेमपूर्वक उनकी पूजा की । कुछ शान्त होने पर ऋपियों ने पाण्डु के यनवाम, पुत्रों के जन्म और पाण्डु की मृत्यु आदि की कथा क्रम क्रम से भीम को सुना । सब बातें कह कर उन्होंने पाण्डु के मृतक शरीर और पाँचों पुत्रों को भीष्म के सुपुर्द किया, और अपने आश्रम को लौट गये । धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर ने पाण्डु और माद्री के सत्कार की शास्त्र रीति से व्यवस्था की । एक पवित्र स्थान में उनके अग्नि-संस्कार का प्रबन्ध हुआ। ___ जितने ज्ञाति, वान्धव और मन्त्री लोग थे सब इकट्ठे हुए। पाण्डु और माद्री के शरीरों को उन्होंने फूलों से अच्छी तरह सजाया। फिर एक उत्तम रथी पर बहुमूल्य वस्त्र बिछा कर उन्हें उसके ऊपर रक्खा । उस व बड़ी भाव भक्ति से अपने कन्धों पर रख कर दाहकर्म की जगह ले चले। किसी ने सफ़ेद चर्म धारण किया, किनी ने हाथ में चमर लिया, किसी ने सफेद फूलों की माला ली । सफेद वस्त्र धारण किये यज्ञ करनेवाले ब्राह्मण अग्नि में आहुति देते हुए आगे आगे चले। अनगिनत प्रजा जन उनके पीछे हुए । गङ्गा के किनारं, जहाँ चिता लगाना निश्चित हुआ था, वहाँ पहुँचने पर रथी रक्खी गई। मृत-देह को सफेद वस्त्र पहनाया गया। कालागुरू, कमर, कस्तूरी और चन्दन आदि सुगन्धित चीजों का लेप लगाया गया। प्रेतकार्य हो चुकनं पर घी से भीगे हुए पाण्डु और माद्री के शरीर चन्दन की चिता पर एक ही साथ दाह किये गये।