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पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/६१

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पहला खण्ड ] धृतराष्ट्र के पुत्रों का पाण्डवों पर अत्याचार बेटा ! बिदुर जी ने अज्ञात भाषा में तुमसे क्या कहा और तुमने उसका क्या उत्तर दिया ? यदि इस बात के बताने में कोई हानि न हो तो मैं जानना चाहती हूँ। युधिष्ठिर ने कहा : चचा विदुर ने म्लेच्छ-भाषा में हमसे दुर्योधन के एक कूटमन्त्र की बात कही। उन्होंने युक्ति से हमें यह सूचित किया कि दुर्योधन ने हमारे साथ छल करने की ठानी है; इससे हमें सावधान रहना चाहिए। हमने भी उनसे उसी भाषा में उत्तर दिया कि आपके कहने का मतलब हम समझ गये। आठवें दिन पाँचों पाण्डव माता के साथ वारणावत् पहुँचे। उनके आने का शुभ समाचार सुन कर हज़ारों पुरवासी और प्रजा-जन, हाथी, घोड़े और रथ आदि पर सवार होकर, उनकी अगवानी के लिए, जय-जयकार करते हुए, नगर से बाहर निकले । आगे बढ़ कर वे पाण्डवों से मिले और उनका अभिवादन किया। प्रजा-वर्ग से घिरे हुए पाण्डवों ने नगर में प्रवेश किया। ब्राह्मण, नगर के अधिकारी, रथी, वैश्य और शूद्र लोगों के भी घर जा जाकर पाण्डवों ने हर एक की पूजा ग्रहण की । फिर उनके रहने के लिए जो महासुन्दर महल सजाया गया था उसमें जाकर उतरे। पुरोचन ने पाण्डवों की बड़ी सेवा-शुश्रूषा की। उसने उनके ग्वाने, पीने और सोने आदि का बहुत ही अच्छा प्रबन्ध पहले ही से कर रक्खा था। नाना प्रकार के गजभोग तैयार कर ग्क्वे थे। उस दुरात्मा ने पाण्डवों को बड़े ही सुख और सत्कार से रक्ग्वा । प्रजा ने भी उनका बड़ा आदर कियाउनकी हृदय से पूजा-परिचर्या की । दस दिन तक पाण्डव इस महल में रहे। ग्यारहवें दिन पुरोचन अपना पाप-कर्म करने के इगद में पागडवों का लाख के बन हुए उस लाक्षागृह में ले गया। वहाँ जाने के लिए पुरोचन ने बड़ा आग्रह किया-बड़ी हठ की। उसके अतिशय आग्रह को देख युधिष्ठिर के मन में सन्देह हुआ। उस दिन से वे बड़ी मावधानी से रहने लगे। सब बातों को-सब घटनाओं को-वे उस दिन से बहुत ध्यानपूर्वक दंग्वने लगे। लाख के उम घर में जाते ही युधिष्ठिर ने भीम से कहा : भाई ! हमें इस घर में लाख मिली हुई चर्बी की दुर्गन्ध आती है। कुछ धोखा ज़रूर है, इसमें कोई सन्देह नहीं। महात्मा विदुर ने चलते समय जो उपदेश हमें दिया था उसका मतलब अच्छी तरह अब हमारे ध्यान में आ रहा है। यह देग्वा किसी चतुर कारीगर ने घी से भीगे हुए बाँस, मूंज और सन आदि तत्काल जल उठने योग्य पदार्थो से यह घर बनाया है। हा! दुष्ट दुर्योधन कितना क्रूर और निदयी है ! समझे, वह कैसा घोर पाप करना चाहता है ! हम इस समय उसकी सारी चालाकी-उसका सारा क्रूर कर्म-प्रत्यक्ष की तरह देख रहे हैं। उसकी दुष्टता मानों आँखों के सामने दिखाई दे रही है। पुरोचन की मदद से इस घर के भीतर घर के सहित हमें जला कर खाक कर देने का उसने विचार किया है ! हे आर्य ! यदि यह घर सचमुच ही ऐसा है कि आग छुते ही जल उठे ना यहाँ एक क्षण भी रहना उचित नहीं । चलिए, जिस घर में हम पहले थे उसी में चलें। युधिष्ठिर ने कहा-हे. वृकोदर ! हमारी समझ में हमें यहीं रहना चाहिए। उस घर में लौट जाना अच्छा नहीं । नराधम पुरोचन को यदि मालूम हो जायगा कि हम लोग उम्मकी कपट-लीला जान गये हैं तो वह उसी दम हम लोगों को जला देगा। क्योंकि उस दुष्ट को न अधर्म से डर है, न लोक-निन्दा ही से डर है । और, यदि, इस घर के जलाये जाने के पहले ही हम लोग भाग भी गये तो भी राज्य का लोभी दुर्योधन हमें जीता न छोड़ेगा। वह दूत द्वारा जरूर ही हमारे प्राण ले लेगा । इससे यही अच्छा होगा कि हम लोग इसी घर में सावधानी से रहें, और मौका मिलते ही, पुरोचन और दुर्योधन के बिना जाने ही, भाग चलें । इसी में हमारा कल्याण है। इस समय शिकार के बहाने हमें सब तरफ घूमना चाहिए। ऐसा करने से हमें यह मालूम हो जायगा कि किस राह से हम लोग यहाँ से भाग सकते हैं। विदुर ने उपदेश देते समय जो इशारा किया था उसके अनुसार इस घर के भीतर हमें एक कन्दरा खोदनी चाहिए। रात फा०६