पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

पहला खण्ड] धृतराष्ट्र के पुत्रों का पाण्डवों पर अत्याचार हुआ। वह उन्हें जोर से पकड़ कर गर्जने लगा। इस पर मतवाले हाथी की तरह दोनों एक दूसरे से भिड़ गये । छाती से छाती लगाकर वे अपना अपना जोर दिखाने और परस्पर एक दूसरे को पीसने लगे। उनकी भयङ्कर गर्जना सुन कर माता-सहित पाण्डव जाग पड़े। उन्होंने देखा कि मनुष्य के मनोहर रूप में हिडिम्बा सामने खड़ी है। उसे देख उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ । कुन्ती ने मधुर वचनों में उससे पूछा : हे सुन्दरी ! तुम कौन हो ? किस लिए यहाँ आई हो ? हिडिम्बा बोली-हे देवि ! यह जो आकाश छुनेवाले बड़े बड़े वृक्षों से परिपूर्ण काला काला वन है वह मेरे भाई हिडिम्ब नामक राक्षस-राज के अधिकार में है। यहीं वह रहता है। उसी ने तुम्हें और तुम्हारे पुत्रों को मारने के लिए मुझे यहाँ भेजा था । परन्तु तपे हुए सोने के समान शरीग्वाले तुम्हारे पुत्रों को देख कर मैं मोहित हो गई। तुम सब को उठाकर आकाश में उड जाने के लिए मैंने उनसे आज्ञा माँगी। पर आपके पत्र ने मेरी बात न मानी। इस समय मेरे भाई के साथ तुम्हारे पुत्र का घोर द्वन्द्व-युद्ध हो रहा है। हिडिम्बा के मुँह से यह सुनते ही युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव उसी क्षण भीम के पास जा पहुँचे । देर तक युद्ध करने के कारण भीम को कुछ थका हुआ देख उन्हें बढ़ावा देने के लिए अर्जुन ने कहा : हे आर्य ! यदि आपको कुछ थकावट मालूम होती हो तो, कहिए, हम आपकी सहायता करें। यह सुनते ही भीम का क्रोध दूना हो गया । वे बोले :-. श्राप डरिए नहीं । मैं अकेला ही इस वन को इस राक्षम के पापाचरण से छुड़ाऊँगा। यह कह कर भीम ने बड़े जोर से हिडिम्ब को उठा लिया। उठा कर आकाश में चारों तरफ़ उसे खूब घुमाया। फिर उसे ज़मीन पर दे मारा और पशु की तरह उस मार डाला । यह तमाशा देख भीम के भाई बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने भीम को गले से लगा लिया और बार बार धन्यवाद देने लगे। इसके अनन्तर पाण्डव वहाँ से चल दिये । हिडिम्बा भी उनके माथ चलने लगी। इससे भीमसेन को कुछ क्रोध हो पाया। वे बोले :-- हे राक्षसी ! तुम माया रच कर मनुष्यों के साथ सदा ही छल किया करती हो । इससे हम तुमको अपने साथ नहीं रख सकते। इस तरह दुतकारी जाने से हिडिम्बा को बड़ा दुःख हुआ। उसने कुन्ती की शरण ली और कहने लगी : ___माता ! आप मुझ दासी पर कृपा करें। मेरे साथ विवाह करने के लिए आप भीमसेन को आज्ञा दें। कुछ समय तक उनके साथ यथेच्छ घृम फिर कर मैं उन्हें फिर आपके पास ले आऊँगी। यह सुन कर युधिष्ठिर बोले : हे सुन्दरी ! तुम्हारी कामना पूर्ण हो । दिन भर भीमसेन को लेकर जहाँ चाहो घूमो । किन्तु. गत को तुम उन्हें रोज़ हमारे पास छोड़ जाया करो। इसमें अन्तर न पड़ने पावे। जेठे भाई युधिष्ठिर की आज्ञा पाकर भीमसेन ने हिडिम्बा के साथ विवाह करना अङ्गीकार कर लिया। मन ही मन महा आनन्दित होकर हिडिम्बा भीमसेन को लेकर आकाश में उड़ गई । कभी देवताओं की पुरी में, कभी बहनेवाली मनोहर नदियों में, कभी खिले हुए कमलों से सुशोभित सरोवरों के किनारे, कभी सुन्दर सुन्दर वाटिकाओं में, कभी तपस्वियों के आश्रम में, कभी दिव्य द्वीपों में, भीम के के साथ वह विहार करती फिरी। दिन भर वह भीम के साथ आनन्द से रहती; रात को उन्हें उनके भाइयों और माता के पास छोड़ जाती।