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५६ सचित्र महाभारत | पहला खण्ड प्रकार का मनोहर रूप बना कर मन्द मन्द चलती हुई वह भीमसेन के पास आई और लज्जा से अपना सिर कुछ नीचा करके बड़े ही मीठे स्वर में बोली : हे युवा ! हे पुरुष-श्रेष्ठ ! आप कौन हैं ? देवताओं के सदृश रूपवाले ये पुरुष और यह सुकुमारी स्त्री कौन है ? किस बल पर ये यहाँ सो रहे हैं ? यह बड़े ही साहसी मालूम होते हैं। क्या तुम नहीं जानते कि यह स्थान मेरे भाई हिडिम्ब के अधिकार में है ? वह तुम्हारा मांस खाने और रुधिर पीने के लिए अधीर हो रहा है । उसी ने तुम्हें मारने के लिए मुझे भेजा है। परन्तु हे सुन्दर.पुरुष ! तुम्हारे रूपलावण्य को देख कर मैं तुम पर मोहित हूँ। इससे भाई की आज्ञा से मैं तुम्हें नहीं मार सकती। तुम मेरी कामना पूर्ण करो-जो बात मेरे मन में है उसे करो । मैं तुम सबको अपने भाई राक्षस से बचा लूँगी। जल, थल और आकाश में सब कहीं मेरा आवागमन है । कोई जगह ऐसी नहीं जहाँ मैं न जा सकती हूँ। मेरे साथ तुम बड़े आनन्द से रहोगे। हिडिम्बा की बात सुन कर भीमसेन बोले : हे राक्षसी ! तुमको ऐसा न कहना चाहिए। माता और भाइयों को इस घोर वन में असहाय दशा में छोड़ कर किस तरह मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूँ। तुम बड़ी ही मूर्ख मालूम होती हो । तुम्हारे दुरात्मा भाई को क्या मैं डरता हूँ ? मैं अकेला ही सबकी रक्षा कर सकता हूँ। मेरे रहते तुम्हारे भाई का कुछ भी किया न होगा। इससे तुम्हारी इच्छा हो तुम रहा, नहीं जाकर अपने भाई को भेज दो। मैं इन लोगों को नहीं छोड़ सकता। इधर बहन के लौटने में देरी हुइ देख हिडिम्ब का धीरज छूट गया। वह खुद ही पाण्डवों के पास चला । उसे आता देख हिडिम्बा डर गई । भीमसेन से वह रुंधे हुए कण्ठ से दीनता दिखाती हुई कहने लगी : हे महात्मा ! देखिए मेरा भाई क्रोध में भरा हुआ आ रहा है। अब और निस्तार नहीं। अब आपकी किसी तरह रक्षा नहीं हो सकती । दासी की बात मान लीजिए । आपकी आज्ञा पात ही मैं सबको उठा कर आकाश में उड़ जा सकती हूँ। भीम ने कहा-हे भीरु ! डरी मत । धीरज धरो। देखो मैं तुम्हारे सामने ही इस राक्षस को मार गिराता हूँ। हिडिम्ब ने ये सब बातें दूर ही से सुन ली थीं। हिडिम्बा को मनुष्य के रूप में देख कर उसे बड़ा क्रोध हुश्रा । वह उसका तिरस्कार करने और भला बुरा कहने लगा : __ अरी दुष्टा ! मनुष्य पर मोहित होकर तू हमारे भोजन में विघ्न डाल रही है। तुझे धिक्कार है ! जिसके लिए तूने ऐसा निन्द्य काम किया है उसी के साथ, देख, मैं तेरा भी संहार करता हूँ। ____ यह कह कर दांत पीसता हुआ वह हिडिम्बा की तरफ दौड़ा। यह देख उसका उपहास करते हुए भीमसेन बोले : हे पापी ! ठहर ! व्यर्थ गर्जना करके सुख से साये हुए हमारे भाइयों और हमारी माता की नीद में तू क्यों विन डाल रहा है ? अपनी निरपराध बहन के मारने का पाप भी तू क्यों करने जाता है ? यदि तुझमें कुछ भी बल और शक्ति हो तो मुझसे युद्ध कर। भीम के मुँह से इस तरह के वचन सुन कर हिडिम्ब को पहले से भी अधिक क्रोध हो पाया । हिडिम्बा को तो उसने छोड़ दिया, भीम पर झपटा और कहने लगा : रे नराधम ! तेरा अहङ्कार चूर्ण करके तब मैं हिडिम्बा को उसकी करतूत का दण्ड दूंगा। दोनों भुजायें फैलाये हुए राक्षस को सामने आता देख, भाई कहीं जग न पड़ें इस डर से, भीम उसके हाथ पकड़ कर कुछ दूर उसे खींच ले गये। भीमसेन का बल देख कर राक्षस को बड़ा आश्चर्य