________________
पहला खण्ड ] धृतराष्ट्र के पुत्रों का पाण्डवों पर अत्याचार होगा। हमारे एक पुत्र और एक कन्या है, इससे हम पितरों के ऋण से उऋण हो चुकी हैं। शास्त्र में लिखा है कि स्त्री, पुत्र और कन्या सभी आपके लिए हैं। इससे आप निश्चिन्त होकर मुझं ही छोड़ दीजिए-मुझी को जाने दीजिए। मेरे पग्लोक जाने पर आप पुत्र-कन्या का पालन कर सकेंगे। परन्तु आपके न रहने से हम लोगों की बड़ी दुर्दशा होगी। माता-पिता का विलाप सुनकर कन्या को बड़ा दुःख हुआ। वह बोली : हे माता ! हे पिता ! विपत्नि से माता-पिता की रक्षा करने ही के लिए मन्नान का जन्म होता है । इससे आप मुझं ही छोड़ कर इस रख-समुद्र में डूबने से अपना बचाव करें। कन्या की बात सुन कर ब्राह्मण और ब्राह्मणी फिर रोने और विलाप करने लगे। तब बालक पुत्र ने कहा : हे माता ! हे पिता ! हे बहन ! आप न डरें । मैं इस तिनके ही से उम गक्षस को मार कर सबकी रक्षा करूंगा। कुती अब तक चुपचाप खड़ी थीं। मौका पाकर अब वे कुछ आगे बढ़ी और अमृत के समान मधुर वचनों से उन सबके दुःख का कारण पूछने लगी : तुम सब बात मुझसे माफ साफ़ कहा । हो सकेगा ता मैं तुम्हारा दुःख दूर करने के लिए अवश्य यत्र करूंगी। ब्राह्मण ने कहा-हे देवि ! हम लोगों पर जो विपत्ति आनेवाली है उससे बचना मनुष्य का काम नहीं। इस नगर के पास बक नाम का एक गक्षम रहता है। उसका आहार मनुष्यों का मांस है। वही खाकर वह रहता है । यही गक्षम इस नगर का अधिकारी है। शेर, बाघ आदि घातक जन्तुओं और वैरी राजाओं के आक्रमण से वही हम सबकी रक्षा करता है। इसके बदले वह हर एक गृहस्थ के घर से एक एक आदमी और एक एक दिन के लिए अन्न खाने का लता है। जो कोई इस नियम के अनुसार काम नहीं करता उसके मारे परिवार का वह खा जाता है। इस दफ़ हमारं घर की वारी है। हमें और कोई उपाय नहीं देख पड़ना । इमसे हमने निश्चय किया है कि हम सब उस राक्षस के पास जायँ और एक बार ही सारे दुःख से छुटकारा पा लें। कुन्ती ने कहा-हे ब्राह्मण ! राक्षम के डर से अब तुम और दुःख न करो। तुम्हारे लिए मैने एक उपाय सोचा है । तुम्हारा पुत्र अभी बहुत छोटा है; कन्या भी बड़ी सुशीला है। इनमें से किसी का भी राक्षस के पास जाना उचित नहीं; और न तुम्हाग या तुम्हारी स्त्री का ही जाना उचित है। मेरे पाँच पुत्र है । उनमें से एक पुत्र राक्षस के पाम आज के लिए अन्न लेकर चला जायगा। उसके जाने से तुम सबकी रक्षा होगी। ब्राह्मण ने कहा-हे देवि! तुम हमारी अतिथि हो-हमारे घर में ठहरी हुई हो। देवता मान कर अतिथि की पूजा करना हमारा धर्म है। महामूढ़ और अधर्मी आदमी भी अपनी रक्षा के लिए अतिथि का प्राण-नाश नहीं करते। कुन्ती ने कहा-तुमने जो कुछ कहा, सच है। इसके सिवा, किमी के मौ पुत्र हों तो भी वह उनमें से एक को भी छोड़ने के लिए तैयार न होगा। तथापि मै जो अपने एक पुत्र को राक्षस के पास भेजना चाहती हूँ उसका यह कारण है कि उसके मारे जाने का मुझे कुछ भी सन्देह नहीं। वह उलटा राक्षस ही को मार आवेगा। मेरा यह पुत्र बड़ा बलवान् है। इसके पहले भी वह अपने भुज-बल से एक राक्षस को मार चुका है । परन्तु तुम इस बात को किसी से न कहना। क्योंकि कहने से लोगों को आश्चर्य और कौतूहल होगा, और वे हमें तरह तरह की बातें पूछ कर तंग करेंगे। कुन्ती के इन अमृत के समान वचनों को सुन कर ब्राह्मण बहुत ही आनन्दित हुआ । उसने स्त्रीफा०७