पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

५० मचित्र महाभारत [पहला खण्ड सहित कुन्ती की पूजा की। इसके अनन्तर वह ब्राह्मण कुन्ती के साथ भीमसेन के पास आया और सारा हाल उनसे कह सुनाया। दयालु-हृदय भीमसेन ने उसी क्षण गक्षस के पास जाना स्वीकार कर लिया। युधिष्ठिर आदि बाक़ी के पाण्डव भिक्षा लेकर जब घर लौट तब उन्होंने यह सब हाल सुना। युधिष्ठिर इससं कुछ डर गये । वे अप्रसन्न भी हुए । माता को एकान्त में ले जाकर उनसे वे पूछने लगे: माता ! भीम ने यह माहम क्या किया ? किमी ने उनसे यह काम करने के लिए कहा, या खुद ही उन्होने कग्ना अङ्गीकार किया ? कुन्ती ने उत्तर दिया : पुत्र ! हमारे कहने से ब्राह्मण का दुःग्य दूर करने और मारे नगर के हित-माधन के लिए भीमसेन ने यह काम अपने ऊपर लिया है। युधिष्ठिर अप्रसन्न होकर बाले : इम काम के लिए भीमसेन का उजित करके तुमने बड़ी नादानी की। दूसरे के पुत्र की रक्षा के लिए अपने पुत्र के प्राण लेना किम शास्त्र में लिखा है ? इसके सिवा, इसी भीमसेन के बल और पराक्रम की बदौलत लाक्षागृह आदि कितनी ही आपदाओं मे हम लोगों के प्राण बचे हैं। आगे भी हम लोगों का माग भगेमा भीमसेन ही पर है। भीम ही के डर से अब भी दुर्योधन को अच्छी तरह नींद नहीं पाती। फिर क्या समझ का तुमने इतने बड़े माहम का काम किया ? क्या सोच कर तुमने भीम को गक्षम के पाम जान का उपदेश दिया ? जान पड़ता है, विपत्ति के कारण तुम्हारी बुद्धि मारी गई है। कुन्नी ने मन्द और मृदु वचनां में उत्तर दिया : पुत्र युधिष्ठिर ! तुम क्या व्यर्थ दुःग्व करत हो ? तुम अपने मन में यह सन्देह न करो कि नादानी के कारण ब-समझ बूझ मैने यह काम किया है। देखो, इंसी ब्राह्मण के घर रह कर इतने दिनों से हम लोग निश्चिन्त होकर अपना जीवन धारण कर रहे हैं। यह भी हम सबका मदा आदर-सत्कार करता है। इससे ऐसी घोर विपत्ति के समय, इस ब्राह्मण की अपनी शक्ति भर सहायता करना हमाग परम धर्म है। भीम लड़कपन ही से बहुत बलवान है। यही कारण है जो उसके विषय में हमें कोई सन्देह नहींहमें कोई डर नहीं। भीम ने अभी कुछ ही दिनों में न मालूम किनने अदभुत अद्भुत काम कर दिखाये हैं। उन सबका हाल तुम्हें मालूम ही है। इसमें भीम अवश्य ही उम पापी गक्षम को मारने में समर्थ होंगे। इन सब बातों का अच्छी तरह विचार करके ही मैंने भीम को गक्षम के पास जाने का उपदेश दिया है। तुम अपने मन में जग भी न डगे। डग्ने की बान नहीं। यह सुन कर दुःखपूर्ण हृदय से युधिष्ठिर ने कहा : हे माता ! अब मैंन जाना कि तुमने मचमुच ही धर्म का काम किया है। अब मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारे इम इतने बड़े परोपकार के पुण्य-बल से भीममन ज़रूर ही राक्षस का मार सकेंगे। अनन्तर, वह रात बीत जाने पर, बड़े भोर ही अन्न आदि लकर भीमसन बक राक्षस के स्थान पर गये । वहाँ जाकर उसे अपने पाम आने के लिए उन्होंने बार बार बुलाया और उसके लिए खाने की जो सामग्री ले गये थे उसे खुद ही खाने लगे। राक्षस ने आकर जो यह तमाशा देखा तो क्रोध से लाल हो गया। बड़ी भयङ्कर गर्जना करके वह बोला : अरे ! कौन मूर्ख मेरा अन्न खा रहा है ! ___ यह कट कर भीम को मारने के लिए दोनों भुजायें फैलाये हुए वह बड़े वेग से दौड़ा। महाबली भीम ने उसे पकड़ कर बड़े जोर से अपनी तरफ खींच लिया। दोनों वीरों में घोर युद्र होने लगा। श्राम पास के वृक्ष टूट टूट कर गिरने लगे । पृथ्वी हिलने लगी। भीम की मार खाते खात वह राक्षस बहुत थक गया। उसका दम फल उठा। तब उसे भीम ने मुँह के बल जमीन