पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/७४

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सचित्र महाभारत । पहला खण्ड आकाश-यन्त्र के बीचोबीच के सूगल से पाँच बाण चला कर निशाना मार सकंगा उसी का हमारी बहन जयमाल पहनावगी। उस समय तीनों लोकों की सुन्दरियों में श्रेष्ठ द्रौपदी के दर्शन से माहित हुए गजा लोग एक दुसरं का जीनने की इच्छा से अपने अपनं आमनों में उठे। सभा के सब लोग द्रौपदी की तरफ टकटकी लगा का रह गये। इसी समय बुद्धिमान् कृष्ण ने इधर उधर दवा देखने माधारण आदमियों के बीच में ब्राह्मणवेश-धारी पाँच जम्बी पुम्पों को देखा । इससे उनका ध्यान सहसा उम और विच गया । कुछ देर सोच कर उन्होंने अपने बाल-मित्र अर्जुन को अच्छी तरह पहचान लिया और बलदेव का भी उधर देखने के लिए इशाग किया। बलदेव ने भी कृष्ण के अनुमान का सच समझा। तब कृष्ण-बलदेव दोनां का विश्वास हो गया कि पाण्डव लाग लाक्षागृह में जलने से बच गये है। परन्तु और राजकुमारों के प्राण तो द्रौपदी पर निलावर हा चुके थे। उन्हें किसी दूसरी तरफ ध्यान दन की फरमन कहाँ ? वे ईर्ष्या और दुगशा के कारण अपने अपने ओंठ काट रहे थे और चञ्चल-चित्त से इधर उधर घूम घूम का एक दूसरे के निशाना माग्न की चेष्टा का नतीजा देख रहे थे । एक एक करके दुर्योधन, शाल्व. शाल्य, वङ्ग-नरेश, विदेह-राज आदि अनेक राजकुमारों ने मुकुट, हार, बाजूबन्द और कड़े आदि अलङ्कारों से भृपिन होकर अपने अपने बल-वीर्य को दिखलाया। किन्तु उस विकट धनुप को पूरी तौर से नान कर उन पर प्रयध्या चढ़ाना तो दूर रहा, उमका जग मा झुकाने ही उसकी कड़ी चोट से व इधर उधर गिरने और उनके मुकुट, कुण्डल, हार और भुजबन्द आदि दृट टूट कर चारों ओर बिखरने 'लगे । इमसे राजकुमारों ने हार मानी । वे बड़े लज्जित हुए। उनके चेहरे फीके पड़ गये। उन्होंने द्रौपदी के पान की आशा छोड़ दी। महाधनुर्धागे कर्ग, गजा लोगों को इस तरह अपना सा मुँह लिय लौटते देख, झपट कर धनुप के पास जा पहुँचे। सहज ही में उन्होंने उस प्रचण्ड धनुप का उठा लिया और झुका कर उस पर प्रत्यञ्चा चढ़ा दी । इसस सब लोगों का बड़ा आश्चर्य हुआ। इसके बाद पाँच बाण हाथ में लेकर व उस आकाशयन्त्र के पास पहुँचे और निशाना मारने के लिए तैयार हुए। उस समय सबन सोचा कि यही निशाने को मार कर वरमाला प्राप्त करेंगे। पाण्डव लोग कर्ण के कन्या पाने की सम्भावना से बहुत घबराये । द्रौपदी सबके मुँह में यह सुन का कि ये गधा के पुत्र हैं। इनका पालन सारथि अधिरथ ने किया है; इनका जन्म मूत-वंश में है; और अनेक गजों के मुंह पर तिरस्कार-सूचक हमी देख कर सहसा बोल उठी :-- मैं सूत-पुत्र के माथ विवाह न करूंगी । यह सुनते ही अभिमानी कर्ण को क्रोध-पूर्ण हमी आई । उन्होंने उसी क्षण धनुषबाण रख दिया और चुपचाप सूर्य्य की ओर टकटकी बाँधकर देखने लगे । इसके बाद बाक़ी क्षत्रिय लोग भी एक एक करके निशाना मारने को उठे; पर सब विफल-मनीरथ हुए। चेदिगज शिशुपाल ने उस धनुप को कुछ मुका जाकर लिया, पर उसकी चोट को वे न सह सके। इससे उनका घुटना टूट गया । महाबली जरासंध भी धनुप के धक्के से ज़मीन पर आ रहे । मद्रदेश के राजा शान्य भी घुटनों के बल गिर पड़े। मतलब यह कि सबन ठंडी माँसें भर कर हार मानी । गजों की रानी दुर्दशा देखकर अर्जुन से बैठे न रहा गया। वे ब्राह्मण वेश को भूल गये और अपने क्षत्रिय-नेज नथा द्रौपड़ी की सुन्दरता के वश में होकर सहमा उठ खड़े हुए । उठ कर वे उस तरफ बढ़े जिस तरफ़ से निशाना मारा जाना था। इससे ब्राह्मणों में बड़ा कोलाहल मच गया । कोई चिल्लाकर अर्जुन को उत्साह देने लगा । कोई दुखी होकर कहने लगा :