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५५ पहला खण्ड] पाण्डवों का विवाह और राज्य की प्राप्ति अहा ! कैसे आश्चर्य की बात है। बड़े बड़े धनुर्धारी गजा लोग जो काम न कर सके उसको अस्त्र-विद्या न जाननेवाला ब्राह्मण-कुमार कैसे कर सकेगा। चाहे घमण्ड से चूर होकर हो, या कन्या पाने की इच्छा से माहित होकर हो, यह आदमी अपनी शक्ति का विचार किये बिना ही ऐसा कठिन काम करने को तैयार हुआ है । यह सब ब्राह्मणों की हमी करावेगा । इमलिए इसको इस काम से रोकना चाहिए। अर्जुन के पक्षवालों ने कहा : इस जवान के ऊँचे कंधों, लंबी भुजाओं और चलने के उत्साह को देख कर हम लोगों को आशा होती है कि यह इस काम को ज़रूर करेगा। दुनिया में ऐसा कौन काम है जिसको ब्राह्मण नहीं कर सकत । वे फलाहार और वायु भक्षण करके ही नहीं, किन्तु यदि वे कुछ भी न खायँ तो भी शरीर का तेज बनाये रह सकते हैं। देखा महर्षि परशुगम ने तो पृथ्वी के सब क्षत्रियों को जीत लिया था। इसके सिवा यह ब्राह्मण-कुमार यदि इस काम को न भी कर सका तो भी कोई अपमान की बात नहीं । इसलिए मब लोग चुपचाप इमकं काम को देवा । इस बात से मब लोग शान्त होकर ध्यानपूर्वक अर्जुन को देखने लगे। इसके बाद अर्जुन ने पहले वरदायक महादेवजी को प्रणाम करके उस विकट धनुष की प्रदक्षिणा की। फिर बालमित्र कृष्ण को स्नेहभरी दृष्टि से अपनी तरफ़ देखते हुए देख कर बड़े श्रानन्द और उत्माह के साथ उन्होंने धनुष को उठा लिया । ऐसा करने देग्व जिन धनुर्धारी और पराक्रमी गजों के हज़ार चेष्टा करने पर भी धनुप न उठा था उन्हें बड़ी लज्जा मालूम हुई । अर्जुन ने धनुष को तान कर झट उस पर प्रत्यञ्चा चढ़ा दी और हिलनवाले यन्त्र के छेद के बीच से पाँच बाण मार कर निशान को जमीन पर गिरा दिया। सभा में हलचल पड़ गई । देवता लोग अर्जुन के ऊपर फूल बरमाने लगे । हजारों ब्राह्मण अपने मृगचर्म और उत्तरीय वस्त्र हिला हिला कर बड़ी खुशी प्रकट करने लगे । बाजेवालों ने तुरही बजाना और सूत-मागधों ने मधुर कण्ठ स स्तुनि-पाठ करना आरम्भ किया। द्रौपदी ने अर्जुन की अतुल कान्ति को देख कर खुशी के साथ उनके गले में जयमाला पहना दी। राजा द्रुपद भी अर्जुन के अद्भुत बल और फुरतीलेपन से प्रसन्न होकर कन्यादान करने की तैयारी में लगे। द्रुपद को इस ब्राह्मणकुमार के हाथ में कन्या देने के लिए तैयार देख कर आये हुए राजा लोगों को बड़ा क्रोध हो आया । वे एक दुसरं के मुंह की तरफ़ देख कर कहने लगे : राजा द्रुपद ने पटलं ना हम लोगों का आदर-सत्कार खूब किया; पर पीछे से हमारा निगदर किया। हम लोगों का बड़ा अपमान हुा । देवताओं के समान गजां में इन्होंने किमी को अपनी कन्या देन के योग्य न समझा ! ब्राह्मण का वरमाल पाने का क्या अधिकार है ? स्वयंवर की चाल केवल क्षत्रियों ही के लिए शास्त्र में लिखी है। अपनी रीनि छोड़नेवाले इस नीच गजा को. आओ, हम लोग मार डालें। इसके साथ इसके पुत्र को भी जीता न छोड़ें। कन्या यदि हम लोगों में से किसी को न पसन्द करे, तो उसे अग्नि में डाल कर हम लोग अपने अपने राज्य को लौट जायें । क्रोध से अन्धे हुए हजारों हथियार-बन्द राजे तब राजा द्रुपद की तरफ झपटे। इससे वे बहुत डर गये। अर्जुन और भीमसेन ने यह देख कर हथियार उठा लिये और पाञ्चाल-नरेश की रक्षा करने के लिए आगे बढ़े। भीमसेन ने पास के एक वृक्ष को उखाड़ लिया और उसके पत्ते तोड़ ताड़ कर उसे गदा की तरह काम में लाने लगे। अर्जुन ने परीक्षा के लिए रक्खे हुए धनुष को उठा लिया।