पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/८३

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पहला खण्ड पाण्डवों का विवाह और राज्य की प्राप्ति धृतराष्ट्र ने कहा :-हे विदुर ! भीष्म और द्रोण ने जो कुछ कहा वह निश्चय ही हमारे लिए मङ्गलकारक है। तुमने जो कुछ कहा वह भी ठीक है। महाबली पाण्डव भी हमारे पुत्र-तुल्य हैं और राज्य के बराबर के हिस्सेदार भी हैं। इसलिए आप खुद जाइए और आदर के साथ कुन्ती, द्रौपदी और पाण्डवों को ले अाइए। - इसके बाद धर्म और सब शास्त्रों के जाननेवाले विदुर, धतराष्ट्र की आज्ञा के अनुसार तरह तरह के रत्न और धन-सम्पत्ति लेकर पाञ्चाल राज्य में पहुँचे और पद से प्रीतिपूर्वक मिले। पाण्डवों को देख कर बड़े स्नेह से उनका आलिङ्गन किया और कुशल समाचार पूँछे । इसके अनन्तर विदुर ने लाये हुए धन और अलङ्कार आदि को कुन्ती, द्रौपदी, पंच-पाण्डव और पाञ्चालों को देकर सबके सामने द्रपद से निवेदन किया : महाराज ! पुत्र और मन्त्रियों समेत महाराज धतराष्ट्र आपके साथ यह सम्बन्ध हो जाने से बड़े प्रसन्न हुए हैं और बार बार आपकी कुशल पूछी है। कुरुओं में श्रेष्ठ भीष्म ने आपकी सब प्रकार से मङ्गलकामना की है। और, आपके मित्र द्रोण ने नाम लेकर आपको आलिङ्गन किया है । बहुत दिनों की जुदाई के बाद पाण्डवों को देखने के लिए अब सब लोग बड़े उत्सुक हैं। ये भी बहुत दिन तक बाहर रहने के कारण राजधानी में जाने को व्यग्र हैं। कौरव और नगर-निवासी लोग द्रौपदी को देखने के लिए बड़ी व्याकुलता से रास्ता देख रहे हैं । इसलिए आप पत्री-सहित पाण्डवों को शीघ्र ही अपने घर जाने की आज्ञा दीजिए। द्रपद ने कहा :-हे महा-बुद्धिमान् विदुर ! तुमने जो कहा सेा ठीक है । कौरवों के साथ विवाहसम्बन्ध हो जाने से हमें भी बहुत सन्तोप हुआ। और महात्मा पाण्डवों को भी अपने राज्य में जाना उचित है, इसमें सन्देह नहीं ! पर इस विषय में हम खद कुछ नहीं कह सकते । पाण्डव लोग यदि अपनी इच्छा से जाना चाहें और उनके परम मित्र कृष्ण जाने की सम्मति दें तो हमें कोई उन न होगा। तब युधिष्ठिर ने नम्रतापूर्वक कहा : हे पाञ्चाल-नरेश ! हम और हमारे भाई सब आपके अधीन हैं । इसलिए आप जो आज्ञा देंगे हम वही करेंगे। ___पीछे कृष्ण ने भी हस्तिनापुर जाने की सम्मति दी । तब कुन्ती और द्रौपदी को लेकर पाण्डवों ने कृष्ण और विदुर के साथ हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान किया। ___ उनके आने की खबर सुन कर धृतराष्ट्र ने उनकी अगवानी के लिए बहुत से कौरवों के साथ द्रोण और कृप को भेजा । महाबली पाण्डवों ने उन्हीं सब लोगों के साथ धीरे धीरे हस्तिनापुर में प्रवेश किया। उन्हें देख कर नगरनिवासी बड़े प्रसन्न हुए और अनेक प्रकार से उनकी स्तुति करने लगे : अहा ! यह कैसे आनन्द की बात है कि आज पाण्डव लोग इतने दिनों बाद नगर को लौटे हैं। हम लोगों ने यदि कभी दान, होम या तपस्या की हो तो उसके पुण्यफल से पाण्डव लोग सौ वर्षे जीते हुए इस नगर में निवास करें। इसके बाद पाण्डवों ने पितामह भीष्म, चचा धृतराष्ट्र और अन्य बड़े लोगों के चरण छुए और आज्ञा लेकर विश्राम करने के लिए घर में प्रवेश किया। जब वे अच्छी तरह आराम कर चुके तब भीष्म और धृतराष्ट्र ने उन सबको बुला कर कहा : ___पुत्र युधिष्ठिर ! तुम प्राधा राज्य लेकर खाण्डवप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाओ और