पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/८४

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६४ का सचिव महाभारत ..... सचित्र महाभारत [पहला खराब आनन्द से राज्य करो। इससे दुर्योधन आदि के साथ तुम्हारे विवाद का कोई कारण न रहेगा। तुम अपने बाहुबल से सब अनिष्टों से सहज ही में अपनी रक्षा कर सकोगे। आधा राज्य पाने की आज्ञा को पाण्डवों ने मान लिया और बड़े बूढ़े को प्रणाम करके कृष्ण के साथ जंगल की राह से खाण्डवप्रस्थ की ओर चले । उनके आने के कारण नगरी खूब सजाई गई । चौड़ी सड़कें, ऊँचे ऊँचे सफेद मकान, और चारों ओर के आम, नीम, अशोक, चम्पक, बकुल श्रादि वृक्षों की कतारें देख कर पाण्डव लोग बड़े प्रसन्न हुए। पाण्डवों के आने की खबर सुन कर बहुत से ब्राह्मण, बनिये और कारीगर वहाँ रहने के लिए आये। पाण्डवों को राज्य मिल जाने पर कृष्ण और बलदेव बिदा होकर द्वारका को लौट गये । सदा सच बोलनेवाले युधिष्ठिर सिंहासन पर बैठ कर चारों भाइयों के साथ धर्म के अनुसार प्रजा का पालन करने लगे। एक बार पांचों भाई सब इकट्ठे बैठे हुए थे कि देवर्षि नारद घूमते घामते वहाँ श्रा पहुँचे। युधिष्ठिर ने जल और पूजा की मामग्री से उनका सत्कार करके उन्हें एक उत्तम आसन पर बिठाया। उनके आने की खबर सुनते ही द्रौपदी ने पवित्र होकर और मादा-पूर्वक कपड़े-लत्ते पहन कर उनके चरणों में शीश नवाया । महर्षि बहुत प्रसन्न हुए और पूजा ग्रहण करके सबको तरह तरह आशीर्वाद दिये। इसके बाद द्रौपदी को अन्त:पुर जाने की आज्ञा देकर नारद कहने लगे : हे पुरुषों में श्रेष्ठ पाण्डव ! तुम तो पाँच भाई हो, पर धर्मपत्नी तुम्हारी अकेली द्रौपदी है। इस कारण कोई ऐसा उपाय सोचना चाहिए जिससे द्रौपदी के लिए भाइयों में फूट न पड़े। पूर्वकाल में सुन्द और उपसुन्द नामक दो भाई थे। वे एक ही राज्य के राजा थे। दोनों की आज्ञा सब लोग बराबर मानते थे। वे एक दूसरे को इतना चाहते थे कि सोते, जागते, खाते, यहाँ तक कि विहार करते समय भी हमेशा एक ही साथ रहते थे । अन्त में तिलोत्तमा नाम की एक अप्सरा पर वे आसक्त हो गये । इससे उनमें यहाँ तक विवाद हुआ कि उन्होंने एक दूसरे को मार डाला। इसलिए हम कहते हैं कि कोई ऐसा अच्छा उपाय होना चाहिए जिसमें तुम्हारे बीच द्रौपदी के लिए कोई विवाद न हो। ऐसा होने से हम बड़े प्रसन्न होंगे। इस युक्ति-पूर्ण बात को सुन कर पाण्डवों की आँखें खुल गई। उन्होंने नारद की सलाह मान ली और यह नियम कर दिया कि जिस समय द्रौपदी एक भाई के साथ हो उस समय कोई दूसरा भाई उस जगह न जाय । इस नियम को जो तोड़ेगा उसे बारह वर्ष तक ब्रह्मचर्य धारण कर वनवास करना पड़ेगा । नारद के इस उपदेश के अनुसार चलने से पाण्डवों में सदा स्नेह बना रहा । पाण्डवों को राज्य करते हुए कुछ दिन बीत गये । एक दिन कुछ चोरों ने मिल कर किसी ब्राह्मण की गायें चुरा ली । ब्राह्मण क्रोध से कॉपता हुआ खाण्डवप्रस्थ में आया और रो रो कर कहने लगा : हे पाण्डव ! चार लोग आपके राज्य से हमारी गायें चुराये लिये जाते हैं । आप शीघ्र ही रक्षा कीजिए । जो राजा प्रजा की आमदनी का छठा हिस्मा कर लेकर भी प्रजा की रक्षा नहीं करता वह राज्य भर के लोगों के पापों का भागी होता है। ढाढ़ें मार कर रोते हुए ब्राह्मण का विलाप सुन कर अर्जुन ने यह कह कर उसे धीरज दिया कि एरो मत, डरने की कोई बात नहीं । पर जिस घर में अस्त्र-शस्त्र रक्खे थे उसमें इस समय द्रौपदी के साथ युधिष्ठिर विद्यमान थे। इससे नियम तोड़ कर अस्त्र लेने के लिए वहाँ जाने में अर्जुन को बड़ा पसोपेश हुआ। एक तरफ़ ब्राह्मण पर दया और राजधर्म, दूसरी तरफ़ युधिष्ठिर की अप्रतिष्ठा और