पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/८९

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पहला खण्ड] पाण्डवों का विवाह और राज्य की प्राप्ति सुभद्रा ने भी उत्तर में कहा-ऐसा ही हो। अर्जुन के लौट आने से सब भाई बड़े आनन्द्रित हुए। सुभद्रा और अर्जुन के कुशलपूर्वक पहुँच जाने की खबर द्वारका पहुँची। वहाँ से कृष्ण, बलदेव, सात्यकि और प्रद्य म्न आदि भोज, वृष्णि, अन्धक-वंशी यादव असंख्य सेना के साथ बहुत सा दायज का सामान लेकर खाण्डवप्रस्थ आये। युधिष्ठिर ने उनकी अगवानी के लिए नकुल और सहदेव को, आगे से भेजा। सड़कों पर शीतल सुगन्धित चन्दन के रस का छिड़काव हुआ; इससे उनमें धूल का नामोनिशान तक न रह गया । यादव लोगों से वे आदर के साथ मिले। ध्वजा-पताका से शाभिन खाण्डवप्रस्थ में जब उन लोगों ने प्रवेश किया तब नगर-निवासियों ने उनका अच्छा सत्कार किया । जलन हुए गुग्गुल के धुएँ और सुगन्धित फूलों की मालाओं से शाभित सड़कों को पार करते हुए व इन्द्रपुरी के समान राजभवन में गये । युधिष्ठिर नं बलदेव का यथोचित सत्कार करके कृष्ण को गले से लगाया। इसके पीछ बड़े बड़े यादव वीरों का यथोचित आदर किया। जब सब लोग बैठ गये तब कृष्ण ने अर्जुन को चार घोड़े का रथ, मथुरामंडल की गायें, नंज चलनेवाले घोड़, सेवा करने में कुशल दासियाँ और बहुत से वस्त्र, अलङ्कार आदि कितनी ही चीजें दायज में दी! कुछ दिन खाण्डवप्रस्थ में रह कर बलदेव और अन्य यादव लोग द्वारका लौट गये । लौटतं समय बहुमूल्य चीजें उनकी भेंट की गई। कृष्ण अर्जुन के साथ रह गये । इसी समय सुभद्रा के गर्भ से अभिमन्यु नामक अर्जुन का एक तेजस्वी पुत्र पैदा हुआ। अभिमन्यु के उत्पन्न होते ही अर्जुन ने ब्राह्मणों को बहुत सी गायें और सुवर्ण-झान दिया। उसके जातकर्म आदि सब शुभ काम कृष्ण ने खुद किये । द्रौपदी के गर्भ से भी पाँच पतियों से पाँच पुत्र हुए । युधिष्ठिर के प्रांतविन्य, भीमसन के सूत-साम, अर्जुन के श्रुतकी , नकुल के शतानीक और सहदेव के श्रुताशन । एक दिन अर्जुन ने कृष्ण से कहा :मित्र ! आज कल बड़ी गर्मी पड़ती है। इसलिए चलो कुछ दिन यमुना के किनारे रहे। कृष्ण को भी यह बात पसन्द आई। दोनों यमुना के किनारे रमणीय स्थानों में भ्रमण करने लगे। एक दिन नदी के किनारे बैठे वे तरह तरह की बातें कर रहे थे कि इतने में तपे हुए साने के रङ्ग का, पिङ्गलवर्ण, घनी दाढ़ीवाला एक लम्बा पुरुष सामने आकर बोला : हम ब्राह्मण हैं। सदा अधिक भोजन करते है। तुमसे अपने भोजन के लिए कुछ माँगते हैं। अर्जुन और कृष्ण ब्राह्मण को भोजन देने पर राजी होकर बोले :हे ब्राह्मण ! अनेक प्रकार के अन्नों में से आप क्या खाना चाहते हैं ? तब ब्राह्मण बोला : हम अग्नि हैं। हम अन्न नहीं खाते । बहुत दिनों से हमारी इच्छा है कि खाण्डव वन जलाकर और वहाँ के जीव-जन्तुओं को खाकर हम तृप्त हों। किन्तु उस वन में इन्द्र का मित्र नागराज तक्षक रहता है। हमने जितनी बार वन जलाने की चेष्टा की उतनी ही बार इन्द्र ने, इस डर से कि खाण्डव के जल जाने से तक्षक भी जल कर मर जायगा, हमको जलाते हुए देख पानी बरसा कर हमारा मतलब सिद्ध न होने दिया। इसलिए आपसे हम यही माँगते हैं कि आप हमारी मदद कीजिए और अस्त्र लेकर न तो प्राणियों को ही भागने दीजिए और न इन्द्र को पानी ही बरसाने दीजिए।