पृष्ठ:सचित्र महाभारत.djvu/९१

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पहला खण्ड ] पाण्डवों का विवाह और राज्य की प्राप्ति को न जाने कहाँ उड़ा कर क्षण मात्र में आकाश ही को साफ कर दिया। यह समझ कर कि अर्जुन को जीतना बड़ा कठिन काम है, इन्द्र ने भी अग्नि के जलाने के काम में विन डालने से हार मानी। खाण्डव वन के रहनेवाले सभी दानव, राक्षस, सॉप, हाथी और सिंह अग्नि के भयङ्कर मुख में पड़ कर मर गये । उनकी घोर ध्वनि से चारों दिशायें गूंज उठीं। तक्षक के घर में मय नाम का एक दानव रहता था। वह कृष्ण के चक्र के भय से भागने का रास्ता न पा कर डर के मारे अर्जुन की शरण में आया और रक्षा करो, रक्षा करो, कह कर उनके पैरों पर गिर पड़ा। अर्जुन को दया आ गई। उन्होंने यह कह कर उसे धीरज दिया कि डरो मत, डरने की कोई बात नहीं । कृष्ण ने उनकी बात रखने के लिए दानव को छोड़ दिया। अग्नि ने भी उसको जीवन-दान देना स्वीकार किया। इस भयङ्कर ग्वाण्डव-दाह से सिर्फ अश्वसेन, मय दानव और मन्दपाल ऋषि के चार पुत्र जलने से बचे । ये चारों पुत्र शाङ्ग नामक पक्षी के छोटे छोटे बच्चों के रूप में थे। भगवान् अग्निदेव पन्द्रह दिन तक जलते रहे और अनन्त जीव भक्षण कर तृप्त हुए। इन्द्र भी कृष्ण और अर्जुन के अद्भुत बल-वीर्य्य से बहुत प्रसन्न हुए। अर्जुन को उन्होंने वर दिया कि महादेव को प्रसन्न करने से तुम्हें आग्नेय, वायव्य आदि जितने दिव्य अस्त्र हैं सब प्राप्त होंगे। कृष्ण ने सिर्फ यही वर माँगा कि अर्जुन के साथ उनकी मित्रता कभी न टूटे । जब अग्नि और इन्द्र चले गये तब मय दानव को लेकर दोनों मित्र फिर यमुना किनारे चले आये। इसके बाद मय दानव ने हाथ जोड़ कर कहा :- हे अर्जुन ! आपने क्रुद्ध कृष्ण और जलाने के लिए तैयार अग्नि से हमें बचाया है। इसलिए आज्ञा दीजिए, बदले में मैं आपका क्या उपकार करूं ? अर्जुन ने कहा :-हे महाशूर ! तुम हमसे सदा सन्तुष्ट रहो। बदले में किसी उपकार के पाने की हमारी इच्छा बिलकुल नहीं है । मय ने कहा :-हे प्रभो! आपने अपने बड़प्पन के अनुसार ही बात कही है। किन्तु हमारी बड़ी इच्छा है कि आप प्रीतिपूर्वक हमसे कुछ ज़रूर लें। हम दानव-कुल के विश्वकर्मा हैं। इसलिए आपका कोई न कोई काम हम ज़रूर कर सकेंगे। अर्जुन ने कहा :-हे कृतज्ञ ! तुमको मौत के मुँह से बचाकर कृतज्ञता के रूप में हम उसका बदला नहीं लेना चाहते। पर तुमको भी चिरकाल तक अपना ऋणी बनाये रखने की हमारी इच्छा नहीं है। इसलिए यदि तुम कृष्ण का कोई प्रिय काम कर सको तो हम बहुत प्रसन्न होंगे। तब मय दानव ने कृष्ण से आज्ञा माँगी । उन्होंने कुछ देर सोच कर कहा :- हे शिल्प-कर्म-विशारद ! तुम महाराज युधिष्ठिर के लिए खाण्डवप्रस्थ में एक ऐसी सभा बनाओ जैसी किसी ने पहले भी न देखी हो और हजार कोशिश करने पर भविष्यत् में भी वैसी न बना सके। मय दानव कृष्ण की आज्ञा पाकर सभा बनाने के प्रबन्ध में लगा।