पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/११६

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चतुर्थसमुलस। १०३ - - --


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- --- इन प्रत्येक मन्त्रों से एक २ वार आहुति प्रज्वलित अग्नि में छोड़े पश्चात् थली अथवा भूमि में पता रख के पूर्व दिशादि क्रमानुसार यथाक्रम इन मन्त्रों से भाग रखखे ओं साठगायेन्द्राय नमः । सानुगाय यमाय नमः । साठगाय वरुणाय नमः। साठगाय सोमाय नमः। मरुद्वयो नमः। अभ्य नमः । वनस्पतियो नमः : औिये नमः । भद्रकाल्ये नमः 1 ब्रह्मपतये नमः । वास्तुपतये नम। विश्वेन्या देवेभ्य नमः । दिवाचरेभ्यो भूतेश्यो नमः । नक्वारियो भ्य नमः । सवोरमभूतये नम: ॥ k | इन भागों को जो कोई आतिथि हो तो उसको जिस देवे अथवा आति में छोड देखे । इसके अनन्तर लवणान्न अर्थात् दालभात, शाक, रोटी आदि लेकर छ: भाग भूमि में धरे । इस म प्रमाण शुनां च पतितानां च श्वपचां पापरोगिण। वायसान कृमीणां व शनकैनेवेषढांव ॥ मनु० ३। १२ ॥ इस प्रकार ‘श्वभ्यो नमःपतितेभ्यो नम , श्वपग्यो नम, पापरोगियो नमः, बायसेन्यो नमःकृसिभ्यो नम"" धरकर पश्चात् किसी दु खीबक्षित प्राणी अथवा कुचे कौवे आदि को दे देवे। यहां नम: शब्द का अर्थ आन्न अर्थात , पोपी, चाडाल, पापरोगी, कौवे और कृमि अर्थात् द्टी आदि को आन देना यह समुरमृप्ति आदि की विधि है । हवन करने का प्रयोजन यह है कि पाकशालास्थ बायु का शुद्ध होना और जो अज्ञात अदृष्ट जीवों की हत्या होती है उसका प्रत्युषकार कर देना ॥ अब पांचव आतिथिसेवा-अतिथेि इसको कहते हैं कि जिम की कोई ' तिथि निश्चित न हो अर्थात् अकस्मात् धार्मिक, सत्यपदेश, सब के उपकारार्थ सर्वत्र घूमनेवाला पूर्णविद्वा, परमयोगी, संन्यासी गृ‘ स्थ के यहां आये तो उसको प्रथम पा व थे और आचमनीय तीन प्रकार का जल देकर पश्चात् आासन पर सत्कार पूर्वक बिठाल कर खान पान आ।दि उत्तमयम पदार्थों से सेवा शुपा करके उनको प्रसन्न करे पश्चात् सत्सन कर उनसे इन विज्ञान आदि जिनसे घम,