पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१३१

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११८ av...................... सत्यार्थप्रकाशः ।। करने की आवश्यकता होगी। और यही धर्म है कि जैसे के साथ वैसे ही का स- म्बन्ध होना चाहिये (प्रश्न) जैसे विवाह मे वेदादि शास्त्रो का प्रमाण है वैसे नियोग मे प्रमाण है वा नहीं ? (उत्तर) इस विषय में बहुत प्रमाण हैं देखो और सुनो:- कुहस्विहोषा कुह वस्तौरश्विना कुहाभिपित्वं करतः कु- होषतुः । को वो शयुवा विधवेव देवर मर्य न योषां कृणुते । सधस्थ श्रा ॥ ३० ॥ मं० १० । सू० ४० । मं० २ ॥ उदीर्घ नार्यभिजीवलोकं गतासुमेतमुपं शेष एहि । हु- स्तग्राभस्य दिधिषोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सं बभूथ ॥ऋ० ॥ मं० १० । सू० १८ । मं०८॥ ' हे ( अश्विना ) स्त्री पुरुषो ! जैसे ( देवरं विधवेच ) देवर को विधवा और ( योषा मर्यन्न ) विवाहिता स्त्री अपने पति को ( सधस्थे ) समान स्थान शय्या में

एकत्र होकर सन्तानों को ( आ, कृणुते ) सव प्रकार से उत्पन्न करती है वैसे तुम

दोनों स्त्री पुरुष (कुहविदोषा ) की रात्रि और ( कुह वस्त.) कहा दिन में वसे थे ? ( कुहाभिपित्वम् ) कहां पदार्थों की प्राप्ति ( करतः ) की? और (कुहोपतुः) । किस समय कहां वास करते थे ? ( को वां शयुत्रा ) तुम्हारा शयनस्थान कहां है ? तथा कौन वा किस देश के रहनेवाले हो ? इससे यह सिद्ध हुआ कि देश विदेश । में स्त्री पुरुष सङ्ग ही में रहे । और विवाहित पति के समान नियुक्त पति को ग्रहण करके विधवा स्त्री भी सन्तानोत्पत्ति कर लेवे ( प्रश्न ) यदि किसी का छोटा भाई ही न हो तो विधवा नियोग किसके साथ करे ? ( उत्तर ) देवर के साथ परन्तु देवर शब्द का अर्थ जैसा तुम समझे हो वैसा नहीं देखो निरुक्त में:- देवरः कस्माद् द्वितीयो वर उच्यते॥निरु०॥०३। खं०१५॥

देवर उसको कहते हैं कि जो विधवा का दूसरा पति होता है चाहे छोटा भाई :

वा बड़ा भाई अथवा अपने वर्ण वा अपन से उत्तम वर्णवाला हो जिससे नियोग करे उसी का नाम देवर है ॥ हे । नारि ) विधवे तू ( एवं गवासुम् ) इस मरे हुए पति की आशा छोड़ के (शेष ) वाकी पुरुषों में { अभि, जीवलोकम् ) जीते हुए दूसरे पति को ( उपैहि )