पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१५२

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- ---maaseema १४० सत्यार्थप्रकाशः ॥ ___... . . mm.w. nxnmit नरकगामी हैं। इससे संन्यासियों को उचित है कि सत्योपदेश शङ्कासमाधान, वेदादि सत्यशास्त्रों का अध्यापन और वेदोक्त धर्म की वृद्धि प्रयत्न से करके सब । | संसार की उन्नति किया करें ( प्रश्न ) जो संन्यासी से अन्य साधु, वैरागी, गुसाई, खात्री आदि हैं वे भी संन्यासाश्रम मे गिने जायेंगे वा नहीं ? ( उत्तर) नहीं क्योंकि उनमें संन्यास का एक भी लक्षण नहीं, वे वेदविरुद्ध मार्ग में प्रवृत्त होकर वेद से अधिक अपने संप्रदाय के आचार्यों के वचन मानते और अपने ही मत की प्रशंसा ' करते मिथ्या प्रपंच में फँसकर अपने स्वार्थ के लिये दूमरों को अपने २ मत में फँ} साते हैं सुधार करना तो दूर रहा उसके बदले में संसार को बहका कर अधोगति को प्राप्त कराते और अपना प्रयोजन सिद्ध करते हैं इसलिये इनको संन्यासाश्रम में नहीं गिन सकते किन्तु ये स्वार्थाश्रमी तो पके हैं ! इसमे कुछ संदेह नहीं । जो , स्वयं धर्म मे चलकर सब संसार को चलाते हैं आप और सब संसार को इस लोक ! । अर्थात् वर्तमान जन्म में परलोक अर्थात् दूसरे जन्म में स्वर्ग अर्थात् सुख का भोग । करते कराते हैं वे ही धर्मात्मा जन संन्यासी और महात्मा है । यह संक्षेप से सं. न्यासाश्रम की शिक्षा लिखी। अब इसके आगे राजप्रजाधर्म विषय लिखा जायगा। । इति श्रीमदयानन्दसरस्वतीस्वामिकृते सत्यार्थप्रकाशे सुभाषाविभूषिते वानप्रस्थसंन्यासाश्रमविषये पञ्चमः समुल्लासः सम्पूर्णः ॥ ५॥