पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१६५

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प्रस ॥ १५३ पुरोहिन प्रकुवत ऋणुयादेव चर्चिजम् । तेज5स्य ग्रह्माणि कमणि कुमुंखे तानि कानि च ॥ e ॥ म० ७ ॥ ६५ से ६६, ६८ : ७० से ७४७८ ॥ श्र नहज या शाम, दण्ड में विनय क्रिया अर्थात् जिससे अन्याय दण्ड में ने प।व. राजा ने के प्रधान को 'और राजफाट्र्ग तथा सभा के अधीन सत्र Iग ‘ौर दस के प्र: वीर किसी से मेल का विरोध करना अधिकार देवे 1 ॥ १ ॥ दृत जम को । हैं तो फूट में मेल और मिले हुए दुष्टों को फोड़ तोड़ देगे । दूत वह कर्म करे जिससे इन में फूट पडे !। २ ॥ बहू सभापति और सब सभासद् बा दूत माiद व थोध स ऑनरiररI जा राज्य का अभिय जोन के बैंसा यद •थे । फर is iजसमें अपने का पंगा न हो 1 ३ | स्सला सुन्दर जनल बन धान्ययुक्त देश में ( धनु : ९बरी पुरुषों से गहन ( महीदुर्गम ) मट्टी से किया हुआ ( अमृदुर्गम ) जल से बेरा हुया ( बम ) अर्थात् चारों ओर बन ( नदुर्गम् ) चारों शोर ना रहे ५ गिरिदुर्गम् । अथन चारों ओर पदों के बीच में कोट बना ' के इके मध्य में नगर बनावे ] ४ 11 और नगर के चारों ओोर ( Iकार ) कोट। ' बनवे, क्योकि उम में स्थित प्रा एक वीर धनुर्भ ी शखयुक्त पुरुष सौ के साथ और स के दशा हजार साथ युद्ध कर कते हैं ‘इसलिये अब द5य दुग का बनाना उचित है ॥ ५ में बह दुर्ग शबाबधन, धान्य, वाहन, ब्राह्मण जो पढ़ाने उपदेश करने इसे द ( शिा रूप ) कारीगर, यन्त्र नाना प्रकार की कला, ( यव मेन ) चारा घास र जल आदि से सम्पन्न अत् परिपूर्ण हो ॥ ६ ॥ उ न के मध्य में जल वृक्ष पुष्पा iदक सब प्रकार से रक्षित सब अरस्तुओं में मुख्कारक श्वेतवर्ग अपने लिये घर जिस म सब राजक।ये का निवह हो चैम बनवाने ॥ ७ । तना अथन ब्रह्मचर्य से A । बा पढ़ क हातक रोजकाम कर के पश्चात् सन्दिरूष गुपयुक्त हृदय को अ तिप्रिय बडे उत्तम कुल में उत्पन्न सुन्दर लक्षण युक्त अपने क्षत्रिय कुल की कन्या जो कि अपने सदृश विद्यादि गुण कर्म स्वभाव से हो उस एक ही स्त्री के साथ विवाह करे इमरी सब ियों को भी न देखे 11 ८ अगम्य समझकर दृष्टि से AI पुरोहित और ऋटिव का स्वीकार इसलिये करे कि वे अग्निहोत्र और पष्टि आदेिं सब राजघर के क में किया करें और आप सईदा राज काये में तत्पर रहे अर्थात् यह। A P