पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/१८४

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- याe . !! राजा न हो तो मजा किसकी कहावे ? दोनों अपने २ काम में स्वतन्त्र और मिले हुए प्रीवियुक्क काम में परतन्न रहें। प्रजा की साधारण सम्मवि के विरुद्ध राजा वा र रा । जपुरुष न हों राजा की आज्ञा के विरुद्ध राजपुरुष वा प्रजा न चलेयह राजा का राजकीय निज काम अर्थात् जिसको ‘पोलिटिकल' कहते हैं संक्षेप से कह दिया। ! अब जो विशेष देखना चाहे वह चारों वेद मनुस्मृति शुक्रनीति महाभारवादि में देखकर निश्चय करे और जो प्रजा का न्याय करना है वह व्यवहार मनुस्मृति के अष्टम और नवमाध्याय आदि की रीति से करना चाहिये, परन्तु यहां भी संक्षेप से लिखते हैं ; प्रयह देशदृश्व शास्त्रढश्व हेतुभिः । अष्टादश मगधु निबद्धानि पृथक् यूथ ॥ १ ॥ तेषामाद्यमृणादान निक्षेपोस्वामिविक्रयः ।

  • ॥ ॥ ।

लक्ष्य च समुथा दतस्यानपक च २ वेतनस्दैव चादान संविदच व्यतिक्रमः। क्रयविक्रयाठशयो विवादः स्वामियालयोः ॥ ३ ॥ सीमाविवादध मेंश्च पारुपये दण्डाचिक । स्ते५ च साह चैत्र स्त्रीसग्रहणमेव च ॥ ४ ॥ स्त्रीपुंध विभागश्च यूतमाह्य एघ व । पदान्यष्टादशैतानि व्यवहारस्यिताविह ॥ ५ i एख स्थानेg भूघिष्ठे विवाद चस्तां ऋ णम् । धर्म शाश्वतम चित्य कुर्घकार्यविनियम ॥ ६ ॥ धमविद्ध स्त्वधर्माण सभाँ यत्रोपतिष्ठते । शल्य चास्य न कृन्ति विलास्तत्र सभासदः ॥ ७ ॥ सभ बा न प्रवेष्टट्या बक्कयं वासमंजसम् । अनुबन्धिनुबन्वापि नये भवति किल्विी ॥ ८ ॥ ।