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१८८ सत्यार्थप्रकाश: !!

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) परमेश्वर का भी प्रत्यक्ष है और जब आम मन और मन इन्द्रियों को किसी विषय में लगाता वा चोरी आदि बुरी वा परोपकार आदि अच्छी बात के करने का जिस क्षण में आर भ करता है उस समयजीव की इच्छा ज्ञानादि उसी इच्छित विषय पर रुक जाती है उसी क्षण में अनुमा के भीतर से बुरे काम करने में भय, शा और लख्जा तथा अच्छे कामों के करने में अभय, मि.शद्दता और आनन्दोत्साह उठता है वह जीवात्मा की ओर से नहीं किन्तु परम।त्मा की ओर से है और जब जीबोगा शुद्ध होके परमात्मा का विचार करने में तत्पर रहता है उसको उसी समय दोनों प्रत्यक्ष होते हैं जब परमेश्वर का प्रत्यक्षव होता है तो अनुमनाद से पर मेश्वर के ज्ञान होने में क्या सन्देह है ? क्योंकि कार्य को देख के कारण था। अनुमान होता है ( प्रश्न ) ईश्वर व्यापक है वा किसी देशविशेष में रहता है? ( उतर ) व्य।पक है की जो एक देश में रहता तो सवॉन्तयोंमी, सवे, सब . 1 निय ता, सब का स्रष्ट्रा सत्र का धत्त और प्रलयक त नहीं होसकता अप्राप्त देश में क तों की क्रिया का असम्भव है ( प्रश्न ) परमेश्वर दयाल और न्यायकारी है। वा नहीं ' ( उत्तर ) है ( प्रश्न ) ये दोनों गुण परस्पर विरुद्ध हैं जो न्याय करे तो दथा और दया करे तो न्याय छूट जाय क्योंकि न्याय उसको कहते हैं कि जो कमों के अनुसर न अधिक न न्यून सुख दुःख पहुचाना । और दया उसको कहते हैं जो अपराधी को चिना दण्ड दिये छोड देना (उत्तर ) न्याय और दया का नाम- मन ही भेद है क्योंकि जो न्याय से प्रयोजन सिद्ध होता है वही दया दले का प्रयोजन है मनुष्य अपराध करने से बन्द होकर दुःखों को प्राप्त न हों ? कि वही है जो पराये और जैसा दया न्याय की दया कहती दु खों का छुड़ाना अर्थ और तुमने किया वह ठीक नहीं क्योंकि जिसने जैसा जितना बुरा कर्म किया हो उसको उतना वैसा ही दण्ड देना चाहिये उसी का नाम न्याय है और जो अपराधी को । दिया जाय तो दया का नाश हो जाय क्योंकि एक अपराधी डांकू को छोड़ देने से सद धम्मा पुरुषों को दु ख देना है जब एक के छोडने में सहस्त्रों मनुष्यों को दुःख प्राप्त हैं। ता है बह दया जिस कार हो सकती है या वहीं है कि उस डांछ को कारागार में खर पाप करने से बचाना डा पर और अस डाकू को मार देने से अन्य सह सढयों पर दया प्रकाशित होती है प्रश्न ) फिर दया और न्याय दो शब्द क्यों हुए है क्योंकि t दोनों का अर्थ एक ही होता है तो दो शब्दों का होना व्यर्थ है इसलिये एक शब्द का इना , तो अच्छा था इससे क्या विदित होता है कि ग्रा और न्याय का एक प्रयोजल उन।