पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२३३

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आष्टमुल्ला: । २२३ है उपादान कर ण के सदृश कार्य में गुण होते हैं तो वह सच्चिदानन्दस्वरूप जग कार्यरूप से असन्न जड़ और आनन्द राहत, ब्रह्मा अज और जगत् उत्पन्न हुआ । है। ऋझ अटश्य और जगनू दृश्य है जहा अखण्ड और जगत खण्डरूप है जो ब्रह्म से पृथिव्य।दि फग्र्य उत्पन्न होवे तो टथिध्यादि से कार्य के जड़द गुण त्रा में भी हवें अथत जैसे व्यिादि ज ड हैं वैसा ब्रह्मा भी जड रोजाय और जैसा परमेश्वर चेतन हैं वे 'व्यदि कट्य चंसन ना चाहय t आर जी मकरी का दृष्टान्त - ई - दिया वह तुम्हारे मत का स्क नहीं किन्तु बाधक है क्यो िवह जज दुरूप शरीर तन्तु का उपादान और जीवरमा निमित्त कारण है और यह भी पर मामा की अ दुत रचना का प्रभाव है क्योंकि अन्य जन्तु के शरीर से जीव तन्नु नहीं निकाल कता। वैसे ही व्यापक जूह ने अपन भीतर व्याप्य प्रकृति और परमाणु कारण से स्थूल जगन को बनाकर बाहर स्थूलरूप कर आप उसी में व्य। पक होके साक्षी भूत आनन्दमय होरहा है Pl और जा परमात्माने इक्षण अथोत् दशन वे चार र कामना की कि म सत्र जगत् को बनाकर प्रसिद्ध होऊ अथात् जब जगत उत्पन्न

होता है तभी जीवों के विचार, ज्ञानध्यान, उपदेश, श्रवण में परमेश्वर प्रसिद्ध

और बहुत स्थूल पदार्थों से स बन्तेमाल होता है जल प्रलय होता है तब परमश्वर । और मुक्तजीवों को छोड़ के उसको कोई नहीं जानता और जो वह कारिका है। वह भ्रममूलक है क्योंकि प्रलय में जगत् प्रसिद्ध नहीं था और सृष्टि के अन्त अथो प्रलय क आरम्भ स जवत दूसरा वार सूट व हेागा तबतक भा जगन का क रण सूक्ष्म होकर अप्रसिद्ध रहता है क्योंक ‘-- तम आास तमसा गूढमय n आ० म० १० ३ सू० १२९ । मं० ३ ॥ । आसीदिवं तमोभूतमपज्ञातमल क्षण में अतिक्र्यमविशेष प्रसुतमिव सर्वत: t मनु १ से ५ ॥ यह सब जगन स्iष्ट पल प्रलय में अन्धकार से आव्रत आच्छादित था और प्रलयार भ के पश्चात् भी वैसा ही होता है उस समय न किसी के जानने न नर्क में लाने और न प्रसिद्ध चिन्हों से युक्त इन्द्रियों से जानने योग्य था और न } होगा किन्तु बत्तसान में जाना जाता हैं आर प्रसिद्ध चेन्हा से युक जान यांग्य ! होता और यथावत् उपलब्ध है ।पुन: डस कारि काकार ने वर्त्तमान में भी जगन् का ! ' अभrब लिखा सो सर्वथा आश्रमाण है क्योंकि जिसको प्रसता प्रमाणों से जावता है ।