पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२३२

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छत्याशीछ: अदि जड़ के संये ग से वेहूं भी जाते है परन्तु इनका नियम पूर्वक बनाना व बिगड़ना परमेश्वर और जीव के आधन है । जब कोई वस्तु बनाई जाती है तब जिन २ साधनो से अत् ज्ञान दर्शन वल हाथ और नाना प्रकार के साधन और दिशा ताल और आकाश साधारण कारण जैसे बड़े को बनाने वाला कुम्हार नि सित, मट्टी उपादान और दण्ड चक्र आदि सामान्य निमित्त दिशा, काल, आकाश, प्रकाश, , हे। थ, ज्ञान, क्रिया आदि निमित्त सा बारण और निमित कारण भी होते हैं । इन तीन कारों के विना कोई भी वस्तु नहीं बन सकती और न बिगड़ सकती हैं ( मa ) नवीन वेदान्त लोग केवल परमेश्वर ही तो जगत् का अiभन सेवपादान कारण मानते हैं: = यथोoनाभि : सृजते गृहणते च ॥ मुण्डकोपनि मुं७ १। ख० १ से १० ७ ! यह उपनि का वचत है । जैसे मकरी बाहर से कोई पदार्थ नहीं लेती है अपने ही में स तन्तु निगल जाला बनाकर आप ही उसमें खेलती है वैसे नहा अपने में से जगन् को बना आप जगदाकार बम आ ही क्रीड़ा कर रहा है सो ? नढ़ इच्छा और कासना करता हूं है कि मैं बहुरूप अर्थात् जगदाकार होजा ? कृहपमान स सव जगप नया क्याग: श्रदान्ते च यन्नास्ति वगैमानेsपि तत्ता ॥ गौड़पादीय ? करके श्लाक ३१ ! यह माहगपनिपद पर कारिका है । जो थम न हो अन्त में न रहे वह । वर्तमान में भी नहीं है। किन्तु सृष्टि की आदि मे जगत् न था वृह था प्रलय के ! अन्त में संसtर न रहेगा तो वर्तमान में सत्र जगन् वृह्म क्यों नहीं १ (उत्तर)। तुन्दाएं देने के नउ ार जगन् का उपवास कारण बृह्म होचे तो वह परिणाम : अवस्थान्तरबुक्त चिनारी होजावे और अपने कारण के गुण कर्म भत्र का । म [त है कारणगुपूर्वकः कार्श्वगुणो दृ: ॥ वैशेषिक आ० २ । चाs : ० २३ ॥