पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२४

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वचन से जो जगत् नाम प्राणी चेतन और जंगम अर्थात् जो चलते फिरते हैं “तस्थुषः” अप्राणी अर्थात् स्थावर जड पदार्थ पृथिवी आदि हैं उन सब के आत्मा होने और स्वप्रकाशरूप सब के प्रकाश करने से परमेश्वर का नाम “सूर्य्य” है। (अत सातत्यगमने) इस धातु से “आत्मा” शब्द सिद्ध होता है “योऽतति व्याप्नोति स आत्मा” जो सब जीवादि जगत् में निरन्तर व्यापक हो रहा है “परश्चासावात्मा च य आत्मभ्यो जीवेभ्यः सूक्ष्मेभ्यः परोऽतिसूक्ष्मः स परमात्मा” जो सब जीव आदि से उत्कृष्ट और जीव प्रकृति तथा आकाश से भी अतिसूक्ष्म और सब जीवों का अन्तर्यामी आत्मा है इससे ईश्वर का नाम “परमात्मा” है। सामर्थ्यवाले का नाम ईश्वर है “य ईश्वरेषु समर्थेषु परः श्रेष्ठः स परमेश्वरः” जो ईश्वरों अर्थात् समथों में समर्थ, जिसके तुल्य कोई भी न हो उसका नाम “परमेश्वर” है । (षुञ् अभिषवे, षूङ् प्राणिगर्भविमोचने) इन धातुओं से “सविता” शब्द सिद्ध होता है “अभिषवः प्राणिगर्भविमोचनं चोत्पादनम् । यश्चराचरं जगत् सुनोति सूते वोत्पादयति स सविता परमेश्वरः” जो सब जगत् की उत्पत्ति करता है इसलिये परमेश्वर का नाम “सविता” है । (दिवु क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु) इस धातु से “देव” शब्द सिद्ध होता है (क्रीड़ा) जो शुद्ध जगत् को क्रीड़ा कराने (विजिगीषा) धार्मिको को जिताने की इच्छायुक्त (व्यवहार) सब को चेष्टा के साधनोपसाधनो का दाता (द्युति) स्वयंप्रकाशस्वरूप सब का प्रकाशक ( स्तुति ) प्रशंसा के योग्य (मोद) आप आनन्दस्वरूप और दूसरों को आनन्द देनेहारा (मद) मदोन्मत्तों का ताडनेहारा (स्वप्न) सब के शयनार्थ रात्रि और प्रलय का करनेहारा (कान्ति) कामना के योग्य और (गति) ज्ञानस्वरूप है इसलिये उस परमेश्वर का नाम “देव” है । अथवा “यो दीव्यति क्रीडति स देवः” जो अपने स्वरूप में प्रानन्द से आप ही क्रीडा करे अथवा किसी के सहाय के विना क्रीडावत् सहज स्वभाव से सब जगत को बनाता वा सव क्रीड़ाओं का आधार है “विजिगीषते स देवः” जो सब का जीतनेहारा स्वयं अजेय अर्थात् जिसको कोई भी न जीत सके “व्यवहार यति स देवः” जो न्याय और अन्यायरूप व्यवहारों का जनानेहारा और उपदेष्टा “यश्चराचरं जगत् द्योतयति” जो सब का प्रकाशक “य स्तूयते स देवः” जो सब मनुष्यों को प्रशंसा के योग्य और निन्दा के योग्य न हो “यो मोदयति स देवः” जो स्वयं आनन्दस्वरूप और दूसरों को आनन्द कराता जिसको दुःख का लेश भी न हो “यो माद्यति स देवः”