पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/२७१

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नवमखमुल्लाख: ! २६१ से से - । पाप का फलएक पालकी से आनन्दपूर्वक बैठा है और दूसरे बिना जूते पहिरे ऊपर नीचे से तप्यमान होते हुए पालकों को उठाकर ले जाते हैं परन्तु बुद्धिमान लोग इस में यह जानते हैं कि जैसे २ कचहरी निकट आती जाती है वैसे २ साहूकार को बड़ा शोक और सन्देह बढता जाता और कहा को आनन्द होता जाता है जब क चहरी में पहुंचते है तब सेठजी इधर उधर जाने का विचार करते हैं कि प्रावि- बाक् ( वकील ) के पास जा बा सरिश्तेदार के पासआज हूं। हंगा वा जगा न जाने क्या होगा और कार लोग तमबू पीते परस्पर बातें चीते करते हुए प्रसन्न - होकर आनन्द में सो जाते हैं । ज व६ जोत जाय ता हुछ सुख ओर हारजाय तो A में सेठजी दुखसागर में डूब जय आर व ह्यार स फ चल रही इसi प्रकार जब राजा सुन्दर कोमल बिछाने से सोता है तो भी शtत्र निद्रा नहीं आती और मजूर ककर पत्थर छोर सी ऊच नोंच स्थल पर साता है उसका नेट री निद्रा अतीं दें ऐसे ही सर्वत्र समझो ( उत्तर ) यह मझ अानियों की है क्या किसी स।हूकार से कहें कि तू कहार बनजा र कार से कहें कि तू साहूकार बनज। तो साहूकार कभ कर बनना नहीं और कहार साहूकार बनना चाहते हैं जो सुख दु:ख बर बर होता तो अपनी २ अवस्था छोड़ नच और उच बनना वान न चाहते देखो T - एक जीव विज्ञान, पुण्यात्मा, श्रीमान् राजा की मां के गर्भ में आता र दूसरा - ५, मह।दरिद्र घसियारी के गर्भ में आता एक का गर्भ से लकर सवथ द आर दूसरे को सब प्रकार देख मिलता दें । एक जघ जन्मता है तब सुन्दर सुगन्धयुक जलाiदे में स्नान युक्त सं तडॉन दुग्धनाiद यथायोग्य न1 ।त हैं जब वह दूध पीना चाहता है तो उसके साथ मिश्र आदि मिलाकर यथेष्ट मिलता है उो प्रसन्न रखने के लिये नौकर चकर खिलौना से वाशरी उत्तम स्थानों में लड़ से अ नन्द होता है दूसरे का जन्म जंगल में होता स्नान के लिये जल भी नहंी मिटता जब दूध पीना चाहा तब दूध बदल म यू थपेड़ा आदि स ांटा जाता है यन्त आतेस्वर से रोता है कोई नहीं पूछता इत्यादि जीवों को बिना पुण्य पाप के सुख दुसे परमेश्वर पर दोष आता है दूसरा जैसे बिना कमों के सुख .ख हवन iकये द व मिलते हैं तो आगे नरक स्वर्ग भी न होना चाहिये क्योंकि जैसे परमेश्वर ने इस समय विना कम के सुख दुःख दिया है वैसे मेरे पीछे भी जिसको चाहेगा उसको स्वर्ग में और जिसको चढे नरक में भेज देगा पुन. सब जीव अधर्मयुक्त हो जायेंगे में क्यों ? क्योंकि धर्म का फल मिलने में सन्देह है परमेश्वर के 1थ है जैसी ठ की कर 4 -