पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३३३

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एकादशसमुल्लासः ।। यहां शङ्कराचार्य का मत ब्रह्म से अतिरिक्त जीव और कारण वस्तु का न मानना अच्छा नहीं और रामानुज का इस अंश में जो कि विशिष्टाद्वैत जीव और मायासहित परमेश्वर एक है यह तीन का मानना और अद्वैत का कहना सर्वथा व्यर्थ है। ये सर्वथा ईश्वर के अधीन परतन्त्र जीव को मानना, कण्ठी, तिलक, माला, मूर्तिपूजनादि पाखण्ड मत चलाने आदि बुरी बातें चक्रांकित आदि में हैं जैसे चक्रांकित अदि वेदविरोधी हैं वैसे शङ्कराचार्य के मत के नही ।। ( प्रश्न) मूर्तिपूजा कहां से चली ? (उत्तर) जैनियों से । ( प्रश्न ) जैनियों ने कहां से चलाई ? ( उत्तर ) अपनी मूर्खता से । (प्रश्न ) जैनी लोग कहते हैं कि शान्त ध्यानावस्थित वैठी हुई मूर्ति देखके अपने जीव का भी शुभ परिणाम वैसा ही होता है। (उत्तर) जीव चेतन और मूर्ति जड क्या मूर्ति के सदृश जीव भी जड़ होजायगा ? यह मूर्तिपूजा केवल पाखण्ड मत है जैनियों ने चलाई है इसलिये इनका खण्डन १२ वें समुल्लास में करेंगे। (प्रश्न) शाक्त आदि ने मूर्तियों में जैनियों का अनुकरण नहीं किया है क्योकि जैनियों की मूर्तियों के सदृश वैष्णवादि की मूर्तिया नहीं है। (उत्तर) हा यह ठीक है जो जैनियो के तुल्य बनाते तो जैनमत में मिल जाते इसलिये जैन की मूर्तियों ने विरुद्ध बनाई क्योंकि जैनों से विरोध करना इनका काम और इनसे । विरोध करना मुख्य उनका काम था जैसे जैनों ने मूर्तियां नंगी, ध्यानावस्थित और |, विरक्त मनुष्य के समान बनाई हैं उनसे विरुद्ध वैष्णवादि ने यथेष्ट शृङ्गारित स्त्री के सहित रंगे राग भोम विषयासक्ति सहिताकार खड़ी और बैठी हुई बनाई हैं। जैनी लोग बहुतस शंख घण्टा घरियाल आदि बाजे नहीं बजाते ये लोग बड़ा कोलाहल करते है तब तो ऐसी लीला के रचने से वैष्णवादि सम्प्रदायी पोपों के चेले जैनियों के जाल से बच के इनकी लीला में फंसे और बहुत से व्यासादि महर्षियों के नाम से मनमानी असंभव गाथायुक्त ग्रन्थ बनाये उनका नाम “पुराण रखकर कथा भी सनाने लः । और फिर ऐसी २ विचित्र माया रचने लगे कि पाषाण की मूर्तियां बनाकर गुप्त कहीं ! पहाड़ वा जङ्गलादि में धर आये वा भूमि में गाड़द पश्चात् अपने चेलों में प्रसिद्ध : किया कि मुझ को रात्रि को स्वप्न में महादेव, पार्वती, राधा, कृष्ण, सीता, राम वा । लक्ष्मीनारायण और भैरव, हनुमान आदि ने कहा है कि हम अमुक २ ठिकान हैं। हम को वहा से ला, मन्दिर में स्थापना कर और तू ही हमारा पुजारी होने तो हमें ' मनोवाछित फल देवें । जव अांख के अन्धे और गाठ के पूरे लोगों ने पोपजी की लीला ।