पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/३६५

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एकदिशंखमुल: ।।। wwwwwvvwvw vovvvvvvwvvwvvvvwvw Juvut = == वह अपने पुत्र को पुकारता है मुझ को नहीं, जो ऐसा ही नाममाहात्म्य है तो आजकल भी नारायण स्मरण करने वालो के दु.ख छुड़ाने को क्यों नहीं आते यदि यह बात सच्ची हो तो कैदी लोग नारायण २ करके क्यों नहीं छूट जाते ? ऐसा ही ज्योति शास्त्र से विरुद्ध सुमेरु पर्वत का परिमाण लिखा है और प्रियव्रत राजा के रथ के चक्र की लीक से समुद्र हुए उञ्चास कोटि योजन पृथिवी है इत्यादि मिथ्या बातों का गपोड़ा भागवत में लिखा है जिसका कुछ पारावार नही ।। यह भागवत बोयदेव का बनाया है जिसके भाई जयदेव ने गीतगोविन्द बनाया है, देखो ! उसने ये श्लोक अपने बनाये 'हिमाद्रि नामक ग्रन्थ में लिखे हैं कि श्रीमद्भागवतपुराण मैंने बनाया है उस लेख के तीन पत्र हमारे पास थे उनमें से एक पन्न खोगया है उस पत्र में श्लोकों का जो आशय था उस आशय के हमने दो । श्लोक बना के नीचे लिखे हैं जिसको देखना हो वह हिमाद्रि ग्रन्थ में देख लेव हिमाद्रेः सचिवस्यार्थे सूचना क्रियतेऽधुना । स्कन्धाऽध्यायकथानां च यत्प्रमाणं समासतः ॥ १ ॥ श्रीमद्भागवतं नाम पुराणं च मयरितम् ।। विदुषा बोबदेवेन श्रीकृष्णस्य यशोन्वितम् ॥ २ ॥ इसी प्रकार के नष्टपत्र में श्लोक थे अर्थात् राजा के सचिव हिमाद्रि ने वोबदेव पंडित से कहा कि मुझको तुम्हारे बनाये श्रीमद्भागवत के सम्पूर्ण सुनने का अवकाश नहीं है इसलिये तुम सक्षेप से इलोकवद्ध सूचीपत्र बनाओ जिसको देख के मैं श्रीमद्भागवत की कथा को संक्षेप से जान लं सो नीचे लिखा हुआ सूचीपत्र उस बोबदेव ने बनाया उसमें से उस नष्टपत्र में १० श्लोक खोगये हैं ग्यारहवें श्लोक से लिखते हैं, ये नीचे लिखे लोक सब बोबदेव के बनाये है वेः बोधन्तीति हि प्राहुः श्रीमद्भागवतं पुनः । पञ्च प्रश्ना: शौनकस्य सूतस्यात्रोत्तरं त्रिषु ॥ ११ ॥ प्रश्नावतारयोश्चैव व्यासस्य निर्वृतिः कृतात् । नारदस्यत्र हेतूक्तिः प्रतीत्यर्थ स्वजन्म च ॥ १२ ॥