पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४११

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एकादशधमुन्नः ॥ उत्पन्न का नाश न मान पूर्वापर विरुद्ध है जो उत्पत्ति के पूर्व चेतन और जड़ वस्तु न था तो जीव कहां से आया और संयोग किनका हुआ जो इन दोनों को सनातन मानते हो तो ठीक है परन्तु सृष्टि के पूर्व ईश्वर केविना दूसरे किसी तत्व को न मानना यह अापका पक्ष व्यर्थ हो जायगा इसलिये जो उन्नति करना चाहो तो “आर्यसमाज के साथ मिलकर उसके उद्देशानुसार आचरण करना स्वीकार कीजिये नहीं तो कुछ हाथ न लगेगा क्योंकि हम और आपको अति उचित है कि जिस देश के पदार्थों से अपना शरीर बना अब भी पालन होता है आगे होगा उसकी उन्नति तन, मन, धन से सब जन मिलकर प्रीति से करें इसलिये जैसा अर्यसमाज आय्यवर्स देश की उन्नति का कारण है वैसा दूसरा नहीं हो सकता यदि इस समाज को यथावत् सहायता देखें तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि समाज का सौभाग्य बढाना समुदाय का काम है एक का नहीं । ( प्रश्न ) आप सब का खण्डन करते ही असे हो परन्तु अपने २ धर्म में सब अच्छे हैं खण्डन किसी का न करना चाहिये जो करते हो तो आप इनसे विशेष क्या बतलाते हो ? जो बतलाते हो तो क्या अप से अधिक वा तुल्य कोई पुरुष न था ? और न है ऐसा अभिमान करना आपको उचित नहीं क्योकि परमात्मा की सष्टि में एक २ से अधिक तुल्य और न्यून बहुत हैं किसी को घमड करना उचित नहीं ? ( उत्तर ) धर्म सब का एक होता है वा अनेक ? जो कहो अनेक होते हैं तो एक दूसरे से विरुद्ध होते हैं वा अविरुद्ध जो कहा कि विरुद्ध होते है तो एक के विना दूसरा धर्म नहीं हो सकता और जो कहो कि अविरुद्ध हैं तो पृथक् २ होना व्यर्थ है इसलिये धर्म और अधर्म एक ही है। अनेक नहीं यही हम विशेष कहते हैं कि जैसे सव सम्प्रदायों के उपदेशों को कोई राजा इकट्ठा करे तो एक सहस्र से कम नहीं होंगे परन्तु इनका मुख्य भाग देखा तो पुरानी, किरानी, जैनी और कुरान चार ही हैं क्योंकि इन चारों में सब सम्प्रदाय जाते है कोई राजा उनकी सभा करके जिज्ञासु होकर प्रथम वाममार्गी से पुछे हे महाराज ! मैने आज तक कोई गुरु और न किसी धर्म का ग्रहण किया है कहिये सब धर्मों में से उत्तम वर्म किसका है । जिसको मैं ग्रहण करू । ( वाममार्गी ) हमारा है ( जिज्ञासु ) ये नौ सौ निन्न्यानवे कैसे हैं ? ( वाममार्गी ) सेब झठे और नरकगामी हैं क्योंकि “कौलापरतरत्नास्ति इस वचन के प्रमाण से हमारे धर्म से परे काई वर्म नहीं है । ( जिज्ञासु ) अप का क्या धर्म हैं ? ( वाममार्गी ) भगवती का मानना, मद्य मासादि पब मकारों का सेवन अर रुद्रयामऊ